मंगलवार, 31 अक्तूबर 2023

गीत 80 [05]: ज्योति का पर्व है आज दीपावली

 गीत 80 [05]: दीपावली पर एक गीत


ज्योति का पर्व है आज दीपावली

हर्ष-उल्लास से मिल मनाएँ सभी


’स्वागतम’  में खड़ी अल्पनाएँ मेरी

आप आएँ सभी मेरी मनुहार पर

एक दीपक की बस रोशनी है बहुत

लौट जाए अँधेरा स्वयं  हार कर

जिस गली से अँधेरा गया ही नहीं

उस गली में दिया मिल जलाएँ सभी


राह भटके न कोई बटोही कहीं

एक दीपक जला कर रखो राह में

ज़िंदगी के सफ़र में सभी हैं यहाँ 

                एक मंज़िल हो हासिल इसी चाह में

खिल उठे रोशनी घर के आँगन में जब

फिर मुँडेरों पे दीए सजाएँ  सभी ।


आग नफ़रत की नफ़रत से बुझती नहीं,

आज बारूद की ढेर पर हम खड़े ।

युद्ध कोई समस्या का हल तो नहीं,

व्यर्थ ही सब हैं अपने ’अहम’ पर अड़े ।

आदमी में बची आदमियत रहे ,

प्रेम की ज्योति दिल में जगाएँ सभी।


स्वर्ग से कम नहीं है हमारा वतन,

आँख कोई दिखा दे अभी दम नहीं ।

साथ देते हैं हम आख़िरी साँस तक,

बीच में छोड़ दें हम वो हमदम नहीं ।

देश अपना हमेशा चमकता रहे ,

दीपमाला से इसको सजाएँ सभी ।


-आनन्द.पाठक-


मंगलवार, 24 अक्तूबर 2023

ग़ज़ल 343 [19F]: आकर जो पूछ लेते--

 ग़ज़ल 343[19F]

221---2122  // 221---2122


आकर जो पूछ लेते, क्या हाल है हमारा ?

ताउम्र दिल ये करता ,सद शुक्रिया तुम्हारा ।


किस शोख़ से अदा से, नाज़ुक़ सी उँगलियों से

तुमने छुआ था मुझको, महका बदन था सारा ।


होती अगर न तेरी रहम-ओ-करम, इनायत

तूफ़ाँ में कश्तियों को मिलता कहाँ किनारा !


दैर-ओ-हरम की राहें , मैं बीच में खड़ा हूँ

साक़ी ने मैकदे से हँस कर मुझे पुकारा ।


दिलकश भरा नज़ारा, मंज़र भी ख़ुशनुमा हो

जिसमें न अक्स तेरा ,किस काम का नज़ारा ।


जब साँस डूबती थी, देखी झलक तुम्हारी

गोया कि डूबते को तिनके का हो सहारा ।


मैं ख़ुद में गुम हुआ हूँ , ख़ुद को ही ढूंढता हूँ

मुद्दत हुई अब आनन’, ख़ुद को नहीं निहारा !


-आनन्द.पाठक---

सं 28-06-24


सोमवार, 9 अक्तूबर 2023

क़लम का सफ़र -- [ग़ज़ल संग्रह] --एक प्रतिक्रिया=---------डी0के0 निवातिया

 



 -क़लम का सफ़र - [ ग़ज़ल संग्रह ] --- एक प्रतिक्रिया 


                                            --डी0 के0 निवातिया -


आo आनंद पाठक जी लेखन कला के ऐसे हस्ताक्षर है जिन्होंने विभिन्न शैलियों में अपनी कलम का प्रयोग अत्यंत प्रभावशाली ढंग से किया है |  इसी श्रंखला में उनकी अब तक ग्यारह काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके है इनमे कई पुस्तकों को पढ़ने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ जिसमें नवीनतम पुस्तक शीर्षक -क़लम का सफ़र- जिसे हाल में पढ़ रहा हूँ!


मैंने  व्यक्तिगत रूप में  जीवन के अनुभवों में पाया है की प्रत्येक व्यक्ति के अंदर दो व्यक्ति होते है एक वो जो सामाजिक और व्यवहारिक रूप में अपने घर-परिवार, समाज व देश के लिए  अपना जीवन यापन करता है दूसरा वह जो  अपने स्वंय के जीवन के लिए अपनी आत्मीयता से कुछ पल व्यतित करता है उसका प्रारुप कुछ भी हो सकता है किसी भी कला का कोई माध्यम, खेल-कूद या अन्य कोई अपनी रुचि, इसी क्रम में आदरणीय पाठक जी ने भारत सरकार के प्रतिष्ठित संस्थान भारत संचार निगम लिमिटेड में मुख्य अभियंता के रूप में अपनी सेवा देकर अपनी ज़िम्मेदारियों का बखूबी निर्वहन किया इसके इतर इनकी विशेष रुचि ने लेखन में इन्हें वो मुकाम दिया जिसका पर्याय जीवन मे कुछ और हो ही नहीं सकता !


प्रत्येक लेखक/कवि/शायर/रचनाकार अपने अनूठे अंदाज़ के लिए जाना जाता है पाठक जी की ऊर्दू ज़बान पर अच्छी-खासी पकड़ और हिंदी/अंग्रेज़ी के साथ साथ अरबी फारसी भाषा  का शब्दकोश अत्यंत वृहद है! काव्य विधाओ में कविता, गीत, माहिया, नज़्म, आदि विशेष है लेकिन ग़ज़ल विधा पर गहन अध्ययन इनके लेखन को अति विशिष्ट श्रेणी प्रदान करता है साथ ही व्यंग लेखन में हास्य के संग तीक्ष्ण कटाक्ष का कोई तोड़ नहीं है!


नवीनतम ग़ज़ल संग्रह -कलम का सफ़र- नाम सुनते ही उनकी अनवरत लेखन यात्रा का परिदृश्य आँखों के सामने उतरने लगता है!  अपनी  लेखन यात्रा के  बारे में जिक्र करते हुए  "आनन" जी (आनंद जी का कलम नाम) ने इस पुस्तक में बताया की इन्हें  य़ह लेखन कला इनके पिता जी से विरासत में मिली जो स्वयं एक कवि। थे इसके बारे मे अधिक जानकारी पुस्तक पढ़कर प्राप्त की जा सकती है, यहां उतना उल्लेख कर पाना पुस्तक के परिप्रेक्ष्य में यथोचित नहीं लगता! हाँ इतना अवश्य कह सकता हूं की पुस्तक इतनी रोचक है की यदि आप वास्तव में साहित्य में रुचि रखते है तो आप पढ़ने से खुद को रोक नहीं सकते!


इस पुस्तक के बारे मे ग़ज़ल के अच्छे ख़ासे जानकर वरिष्ठ ग़ज़लकार आदरणीय  द्विजेन्द्र 'द्विज' जी अपनी संप्रति दी है जो "आनन" जी  के लेखन और उनकी यात्रा का बहुत प्रभावशाली ढंग से परिभाषित करती है!


य़ह पुस्तक 90 ग़ज़लों  का  एक समृद्ध संग्रह है जिनमें समकालीन देश काल की यथास्थिति और उसके परिदृश्य पर लेखन के माध्यम से जीवन के प्रत्येक पहलुओं को इंगित कर मानवीय जीवन के इर्द-गिर्द बुनी गई ग़ज़लों में आत्मीयता के मनोभावों के साथ जीवन के सुख-दुःख, प्रेम प्रसंग, झूठ, पाखंड, आडम्बर, कटु सत्य, जीवन की कठिनाइयों एवं विविध पहलुओं पर अपनी कलम का बड़ी खूबसूरती से प्रयोग किया है!


पहली ही ग़ज़ल में एक मतला में इतनी साफ़गोई से अपनी बात कह गए जो वर्तमान समय में सटीक बैठती है 


हर जगह झूठ ही झूठ की है खबर

पूछता कौन है अब कि सच है किधर?

!

इस क़लम को ख़ुदा इतनी तौफीक दे 

हक पे लड़ती रहे बेधड़क  उम्र भर !


आजकल के इश्क़ के नाम पर हो रही बाज़ारी पर चोट करते हुए कहते है कि 


मुहब्बत में अब वो इबादत कहाँ है,

तिजारत हुई अब सदाकत कहाँ है!


वो लैला, वो मजनूं, वो शीरी, वो फरहाद,

है पारीन किस्से, हक़ीक़त कहाँ है!!


आनन जी की खासियत यह की वह अपनी बात बड़ी सरलता से कहते है ! सच्चाई को कैसे  बयान कर जाते है ये बात इनकी लिखी इन पंक्तियों से स्पष्ट होता है कि 


अपने नग्मों में आनन मुहब्बत तो भर 

तेरे नग्मों का होगा कभी तो असर!


साहित्य औऱ राजनीति का एक दूसरे के साथ गहरा संबंध रहा है यह संबंध तब खरा  उतरते है  एक दूसरे की  शान  में  कसीदे न पढ़कर जहां आवश्यकता पड़े वास्तविकता से रूबरू कराए इस पर कटाक्ष करते हुए बेख़ौफ़ बा-कमाल लिखा है 


वो मांगते सबूत है देते नहीं है खुद 

आरोप बिन सबूत के सब पर लगा रहे!


कहाँ तुम साफ़ चेहरा ढूंढते हो 

यहां सबका रंगा चेहरा मिलेगा!


राजनीति और वर्तमान साहित्य के आकाओं पर चोट करती एक ग़ज़ल में लिखते है....


वतन के हाल का उसको भी कुछ पता होता 

हसीन ख्वाब में गर वो न  मुब्त्तिला होता!


कलम जुबान नहीं आप की बिकी होती 

ज़मीर आप का जिन्दा अगर रहा होता 


आजकल सामाजिक माहौल जिस दौर से गुजर रहा है जो विषमताएं समाज को दूषित कलंकित कर रही है उस दर्द को करीब से महसूस करते हुए इनकी कलम ने जो शब्द पिरोए है हृदय उद्वेलित औऱ आंखे नम कर देती है इस विषय में पेज 67 पर ग़ज़ल संख्या 50 इसका उदहारण है ग़ज़ल का मतला ही दिल को हिला देता है....


छुपे थे जो दरिन्दे दिल में उसके जब जगे होंगे 

कटा जब जिस्म होगा तो नहीं आंसू बहे होंगे!


न माथे पर शिकन उसके नदामत भी न आँखों में,

कहानी झूठ की होगी बहाने सौ नए होंगे 


अगर पूरी ग़ज़ल पढ़ते है तो सोचने को मजबूर कर देती है आज मानवता का स्तर कितना गिर रहा है  प्रगति और विकास से समृद्ध शिक्षित यह समाज किस और जा रहा है!!


कलम के सफ़र में अपनी ग़ज़लों के माध्यम से शायद ही कोई ऐसा पहलु हो जिस पर इन्होंने अपनी क़लम का प्रयोग न किया हो! 


बातें करने के लिए बहुत है मगर संपूर्ण पुस्तक का विवरण कर पाना मुश्किल है पुस्तक का पूर्ण रसास्वादन करने के लिए आपको यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए विशेषकर ग़ज़ल में रुचि रखने वाले पाठकों और नवांकुरो के लिए अत्यंत उपयोगी है बहुत कुछ सीखने का मसौदे प्रदान करती है!


पुस्तक की विशेषता यह है की आवरण  पृष्ठ से लेकर, मुद्रण, संपादन प्रकाशन सब उम्दा है एवं प्रत्येक ग़ज़ल में क्लिष्ट शब्दों को अर्थ दिए गए है!


साहित्य कला के क्षेत्र में विशिष्ट योग्यता रखने वाले भावनाओं, वेदनाओं, अनुभूतियों और सृजन की अभिव्यक्ति में पारंगत प्रतिभा के धनी एक जागरूक नागरिक के रूप में लेखन को नए आयाम देते रहे और आपकी कलम देश और समाज को सचेतन बनाए रखने के लिए कलम का सफ़र निरंतर चलता रहे!


हार्दिक शुभकामनाओं के साथ 


आपके स्नेहिल आशीर्वाद का आकांक्षी 


डी के निवातिया 🙏




[ नोट - डी0के0 निवातिया जी स्वयं एक साहित्यप्रेमी और अदब आशना है और  एक ह्वाट्स अप साहित्यिक  मंच --गुलिस्तां -  के संचालक और प्रबंधक भी हैं---आनन्द.पाठक-

गुरुवार, 5 अक्तूबर 2023

ग़ज़ल 342 [18F] : यार के कूचे में जाना कब मना है !

 ग़ज़ल 342[18F]

2122---2122---2122


यार के कूचे में जाना कब मना है !

दर पे उसके सर झुकाना कब मना है !


मंज़िलें तो ख़ुद नहीं आएँगी  चल कर

रास्ता अपना बनाना कब मना है !


प्यास चातक की भला कब बुझ सकी है

तिशनगी लब पर सजाना कब मना है !


रोकती हैं जो हवा को,रोशनी को-

उन दीवारों को गिराना कम मना है !


ज़िंदगी बोझिल, सफ़र भारी लगे तो

प्यार के नग्में सुनाना कब मना है !


ज़िंदगी है तो सदा ग़म साथ होंगे

पर ख़ुशी के गीत गाना कब मना है !


जो अभी हैं इश्क़ में नौ-मश्क ’आनन’

हौसला उनका बढ़ाना कब मना है !


-आनन्द.पाठक-

सं 28-06-24