मंगलवार, 30 नवंबर 2021

गीत 72 : मौसम है मौसम बदलेगा

एक  गीत : -- मौसम है, मौसम बदलेगा


सुख का मौसम, दुख का मौसम, आँधी-पानी का हो मौसम
मौसम का आना-जाना है , मौसम है मौसम बदलेगा ।

अगर कभी हो फ़ुरसत में तो, उसकी आँखों में पढ़ लेना
जिसकी आँखों में सपने थे  जिसे ज़माने ने लू्टे  हों ,
आँसू जिसके सूख गए हो, आँखें जिसकी सूनी सूनी
और किसी से क्या कहता वह, विधिना ही जिसके रूठें हो।

दर्द अगर हो दिल में गहरा, आहों में पुरज़ोर असर हो
 चाहे जितना पत्थर दिल हो, आज नहीं तो कल पिघलेगा ।
-- कल पिघलेगा।

दुनिया क्या है ? जादूघर है, रोज़ तमाशा होता रहता
देख रहे हैं जो कुछ हम तुम, जागी आँखों के सपने हैं 
रिश्ते सभी छलावा भर हैं, जबतक मतलब साथ रहेंगे
जिसको अपना समझ रहे हो, वो सब कब होते अपने हैं॥

जीवन की आपाधापी में, दौड़ दौड़ कर जो भी जोड़ा 
चाहे जितना मुठ्ठी कस लो, जो भी कमाया सब फिसलेगा ।
--सब फ़िसलेगा।

जैसा सोचा वैसा जीवन, कब मिलता है, कब होता है,
जीवन है तो लगा रहेगा, हँसना, रोना, खोना, पाना।
काल चक्र चलता रहता है. रुकता नहीं कभी यह पल भर
ठोकर खाना, उठ कर चलना, हिम्मत खो कर बैठ न जाना ।

आशा की हो एक किरन भी और अगर हो हिम्मत दिल में
चाहे जितना घना अँधेरा, एक नया सूरज निकलेगा ।
--- एक सूरज निकलेगा।

विश्वबन्धु, सोने की चिड़िया, विश्वगुरु सब बातें अच्छी,
रामराज्य की एक कल्पना, जन-गण-मन को हुलसा देती ,
अपना वतन चमन है अपना, हरा भरा है खुशियों वाला
लेकिन नफ़रत की चिंगारी बस्ती बस्ती झुलसा देती ।

जीवन है इक सख्त हक़ीक़त देश अगर है तो हम सब हैं
झूठे सपनों की दुनिया से कबतक अपना दिल बहलेगा ।
--- दिल बहलेगा।


-आनन्द पाठक-

सोमवार, 1 नवंबर 2021

गीत 71: आज दीपावली ज्योति का पर्व है--

 एक गीत : दीपावली पर


आज दीपावली, ज्योति का पर्व है
दीप की मालिका हम सजाते चलें

आज मिल कर सजाएँ नई अल्पना
झूमने नाचने का करें सिलसिला
पर्व ख़ुशियों का है और उल्लास का
भूल जाएँ कोई हो जो शिकवा,गिला

मन बँटा हो भले, रोशनी कब बँटी !
प्यार का दीप दिल में जलाते चलें ।

धर्म के नाम पर व्यर्थ उन्माद में
चेतना मर गई, भावना मर गई
मन के अन्दर की सब खिड़कियाँ बन्द है
उनके कमरे में कितनी घुटन भर गई

सोच नफ़रत भरी है, जहर भर गया
इन अँधेरों को पहले मिटाते चलें ।

झोंपड़ी का अँधेरा करें दूर हम
झुग्गियों बस्तियों में जला कर दिए
एक दिन चाँदनी भी उतर आएगी
आदमी जो जिए दूसरों के लिए

अब अँधेरों में कोई न भटके कहीं
सत्य की राह क्या है ? दिखाते चलें

आज दुनिया खड़ी ले के परमाणु बम्ब
ख़ौफ़ फैला फ़िज़ां में जिधर देखिए
लोग हाथों में पत्थर लिए हैं खड़े
कब तलक बच रहे अपना सर देखिए

विश्व में हो अमन, चैन हो, प्रेम हो
बुद्ध के सीख- संदेश गाते चलें ।
आज दीपावली,ज्योति का पर्व है। दीप की मालिका हम सजाते चलें। 

-आनन्द.पाठक-