मंगलवार, 31 मार्च 2015

एक ग़ज़ल 64 : चेहरे पे था निक़ाब---

[एक ग़ज़ल -आप [AAP] की नज़र -- बात  ’आप ’ की नहीं --बात है ज़माने की]
221--2121--1221--212

चेहरे पे था  निक़ाब ,हटाने का शुक्रिया
"कितने कमीन लोग"-बताने का शुक्रिया

अच्छा हुआ कि आप ने देखा न आईना
इलज़ाम  ऊँगलियों पे लगाने का शुक्रिया

घड़ियाल शर्मसार, तमाशा ये देख कर
मासूमियत से आँसू  बहाने का शुक्रिया

हर बात पे कहना कि तुम्ही दूध के धुले
"बाक़ी सभी हैं चोर’ जताने का शुक्रिया

फ़ैला के ’रायता’ कहें थाली भी साफ़ है
जादू ये बाकमाल दिखाने का शुक्रिया

कीचड़ उछालने मे न सानी है ’आप’ का
हर बात में ही टाँग अड़ाने का शुक्रिया

’आनन’ करे यक़ीन,करे भी तो किस तरह
’आदर्श’ का तमाशा बनाने का शुक्रिया

-आनन्द पाठक


[सं 30-06-19]

रविवार, 29 मार्च 2015

चन्द माहिया : क़िस्त 18


 

क़िस्त 18

1

क्यों मन से हारा है ,

कब मिलता सब को

हर बार किनारा है ?

 

2

इक दर्द उभरता है,

ख़्वाब-ओ-ख़यालों में

वो जब भी उतरता है।

 

3

कल मेरे बयां होंगे,

मैं न रहूँ शायद,

पर मेरे निशां होंगे।

 

4

आए वो नहीं अबतक,

ढूँढ रहीं आँखें,

हर शाम ढलूँ कबतक ?

 

5

महकी ये हवाएँ हैं,

उनके आने की

शायद ये सदाएँ हैं।

 

 

 

रविवार, 15 मार्च 2015

चन्द माहिया : क़िस्त 17


:1:
दरया जो उफ़नता है
दिल में ,उल्फ़त का
रोके से न रुकता है 

:2:

क्या 'कैस' का अफ़साना !
कम तो जानम
्दिल मेरा दीवाना

:3:

क्या हाल सुनाऊँ मैं 
तुम से छुपा ही क्या
जो और छुपाऊँ मैं

:4:

हो रब की मेहरबानी
कश्ती सागर की 
है पार उतर जानी


:5:

 क्या हुस्न पे इतराना !
मेला दो दिन का
इक दिन तो ढल जाना

-आनन्द.पाठक




[सं 11-06-18]


शनिवार, 7 मार्च 2015

गीत 58 :आई थी क्या याद हमारी होली में

मित्रो !
कल ’होली’ थी , सदस्यों ने बड़े धूम-धाम से ’होली’ मनाई।  आप ने उनकी "होली-पूर्व " की रचनायें पढ़ीं 
अब होली के बाद का एक गीत [होली-उत्तर गीत ]-... पढ़े,.

होली के बाद की सुबह जब "उसने" पूछा --"आई थी क्या याद हमारी होली में ?" 
  एक होली-उत्तर गीत
    
"आई थी क्या याद हमारी होली मे ?"
आई थी ’हाँ’  याद तुम्हारी होली में

रूठा भी कोई करता क्या अनबन में
स्वप्न अनागत पड़े हुए हैं उलझन में
तरस रहा है दर्पण तुम से बतियाने को
बरस बीत गए रूप निहारे दरपन में
पूछ रहे थे रंग  तुम्हारे बारे में -
मिल कर जो थे रंग भरे रंगोली में

होली आई ,आया फागुन का मौसम
गाने लगी हवाएं खुशियों की सरगम
प्रणय सँदेशा लिख दूँगा मैं रंगों से
काश कि तुम आ जाती बन जाती हमदम 
आ जाती तो युगलगीत गाते मिल कर
’कालेज वाले’ गीत ,प्रीति की बोली में

कोयल भी है छोड़ गई इस आँगन को
जाने किसकी नज़र लगी इस मधुवन को
पूछ रहा ’डब्बू"-"मम्मी कब आवेंगी ?
तुम्हीं बताओ क्या बतलाऊं उस मन को
छेड़ रहे थे नाम तुम्हारा ले लेकर
कालोनी वाले भी हँसी-ठिठोली में --आई थी ’हाँ याद तुम्हारी होली में 

-आनन्द.पाठक