:1:
दरया जो उफ़नता है
दिल में ,उल्फ़त का
रोके से न रुकता है
:2:
क्या 'कैस' का अफ़साना !
कम तो नहीं मेरा
उलफ़त में मर जाना
:3:
क्या हाल सुनाऊँ मैं
तुम से छुपा है क्या
जो और छुपाऊँ मैं
:4:
हो उसकी मेहरबानी
कश्ती सागर की
है पार उतर जानी
:5:
क्या हुस्न पे इतराना !
मेला दो दिन का
इक दिन तो ढल जाना
-आनन्द.पाठक
[सं 11-06-18]
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