शुक्रवार, 28 अप्रैल 2017

चन्द माहिए : क़िस्त 39

चन्द माहिए : क़िस्त 39 


:1:

वो ख़्वाब दिखाते हैं
जन्नत के हक़ में
जन्नत ही जलाते हैं

:2;

नफ़रत ,शोले ,फ़ित्ने
बस्ती जली किसकी
रोटी सेंकी ,किसने ?

:3:

ये कैसी सियासत है ?
धुन्ध ,धुँआ केवल
ये किस की विरासत है?

;4:

रहबर बन कर आते
छोटे बच्चों से
पत्थर हैं चलवाते 

5
 यह इश्क़ इबादत है
 दैर-ओ-हरम दिल है
फिर किसकी ज़ियारत है

-आनन्द.पाठक-

[सं 15-06-18]


शनिवार, 22 अप्रैल 2017

गीत 62 :कैसे कह दूँ कि अब तुम-


एक  युगल   गीत 

कैसे कह दूँ कि अब तुम बदल सी गई
वरना क्या  मैं समझता नहीं  बात क्या !

एक पल का मिलन ,उम्र भर का सपन
रंग भरने का  करने  लगा  था जतन
कोई धूनी रमा , छोड़ कर चल गया
लकड़ियाँ कुछ हैं गीली बची कुछ अगन

कोई चाहत  बची  ही नहीं दिल में  अब
अब बिछड़ना भी  क्या ,फिर मुलाक़ात क्या !
वरना क्या मैं समझता----

यूँ जो नज़रें चुरा कर गुज़र जाते हों
सामने आने से तुम जो कतराते हो
’फ़ेसबुक’ पर की ’चैटिंग’ सुबह-शाम की
’आफ़-लाइन’- मुझे देख हो जाते हो

क्यूँ न कह दूँ कि तुम भी बदल से गए
वरना क्या मैं समझती नहीं राज़ क्या !

ये सुबह की हवा खुशबुओं से भरी
जो इधर आ गई याद आई तेरी
वो समय जाने कैसे कहाँ खो गया
नीली आंखों की तेरी वो जादूगरी

उम्र बढ़ती गई दिल वहीं रह गया
ज़िन्दगी से करूँ अब सवालात क्या !
वरना क्या मैं समझता नहीं-------

ये सही है कि होती हैं मज़बूरियाँ
मन में दूरी न हो तो नहीं  दूरियाँ
यूँ निगाहें अगर फेर लेते न तुम
कुछ तो मुझ में भी दिखती तुम्हें ख़ूबियाँ

तुमने समझा  मुझे ही नहीं आजतक
ना ही समझोगे होती है जज्बात क्या !

वरना क्या मैं समझती नहीं--------

-आनन्द.पाठक-


शनिवार, 8 अप्रैल 2017

चन्द माहिया : क़िस्त 36

चन्द माहिया : क़िस्त 36

:1:
दुनिया को दिखाना क्या !
दिल न मिलाना तो
फिर हाथ मिलाना क्या !

:2:

कुछ तुम को ख़बर भी है
मेरे भी दिल में
इक ज़ौक़-ए-नज़र भी है

:3:

गुरबत में हो जब दिल
दर्द कहूँ किस से
कहना भी बहुत मुश्किल

:4;

 अनबन हो भले जानम
तुम पे भरोसा है
रूठा  न करो, हमदम !

5

कहता है कहने दो
 बात ज़हादत की
 ज़ाहिद तक रहने दो

शब्दार्थ :
ज़ौक़-ए-नज़र = रसानुभूति वाली दॄष्टि
गुरबत   में        = विदेश में/ग़रीबी में



-आनन्द.पाठक-
[ सं 15-06-18 ]