चन्द माहिया : क़िस्त 36
:1:
दुनिया को दिखाना क्या !
दिल न मिलाना तो
फिर हाथ मिलाना क्या !
:2:
कुछ तुम को ख़बर भी है
मेरे भी दिल में
इक ज़ौक़-ए-नज़र भी है
:3:
गुरबत में हो जब दिल
दर्द कहूँ किस से
कहना भी बहुत मुश्किल
:4;
अनबन हो भले जानम
तुम पे भरोसा है
रूठा न करो, हमदम !
5
कहता है कहने दो
बात ज़हादत की
ज़ाहिद तक रहने दो
शब्दार्थ :
ज़ौक़-ए-नज़र = रसानुभूति वाली दॄष्टि
गुरबत में = विदेश में/ग़रीबी में
-आनन्द.पाठक-
[ सं 15-06-18 ]
:1:
दुनिया को दिखाना क्या !
दिल न मिलाना तो
फिर हाथ मिलाना क्या !
:2:
कुछ तुम को ख़बर भी है
मेरे भी दिल में
इक ज़ौक़-ए-नज़र भी है
:3:
गुरबत में हो जब दिल
दर्द कहूँ किस से
कहना भी बहुत मुश्किल
:4;
अनबन हो भले जानम
तुम पे भरोसा है
रूठा न करो, हमदम !
5
कहता है कहने दो
बात ज़हादत की
ज़ाहिद तक रहने दो
ज़ौक़-ए-नज़र = रसानुभूति वाली दॄष्टि
गुरबत में = विदेश में/ग़रीबी में
-आनन्द.पाठक-
[ सं 15-06-18 ]
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