मित्रो !
कुछ दिन पहले, आप लोगों से अपनी एक किताब ’अनुभूतियॊं के रंग’ [ गीति-काव्य]
का आवरण पृष्ठ साझा किया था जिस पर आप लोगों की उत्सावर्धक टिप्पणियाँ
मिलीं । उसी क्रम में –यह सूचित करते हुए हर्ष
का अनुभव हो रहा है कि उक्त संग्रह अब छप कर बाज़ार में आ गया है जिसके मिलने का पता है ---
संजय जी
अयन प्रकाशन
जे-19/39 राजापुरी. उत्तम नगर , नई
दिल्ली-59
Email
: ayanprakashan@gmail.com
Website
: www.ayanprakashan.com
मोबाइल नं0/व्हाट्स अप
नं0----92113 12372 पर भी सम्पर्क किया जा सकता है।
यह संग्रह अमेज़ान पर भी उपलब्ध है --लिंक है
https://www.amazon.in/s?i=merchant-items&me=A2UV5DLW4L6UU7&page=2&marketplaceID=A21TJRUUN4KGV&qid=1650948545&ref=sr_pg_2
इस पुस्तक को आशीर्वचन मेरे प्रवासी
मित्र श्री राकेश खंडेलवाल जी ने दिया है जो वर्तमान में अमेरिका में रहते है। संभवत: आप लोग उनकी गीत-साधना से परिचित
होंगे।
खंडेलवाल जी स्वयं गीत विधा के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं । कहते हैं उनके
गीतों को गुनगुनाना तो आसान है पर भाव समझना ज़रा मुश्किल । इस संग्रह के बारे में उन्हीं के शब्दों में ---
------भाई आनंद पाठक के लेखन की विभिन्न शैलियों में उनकी रचनात्मकता का सुसज्जित आभूषण युक्त रूप सँवर कर सामने आता है। उनकी रचनाएँ अनुभूति की प्रगाढ़ता और अभिव्यक्ति की परिपक्वता से समृद्ध हैं। व्यंग्य,
गजल, गीत
और कविता के विविध आयामों में उनके विचार और अनुभव का प्रखर
क्षेत्र दृष्टिगोचर होता है ।
इस संग्रह के बारे में, मैं इतना ही कह सकता हूँ—---अनुभूतियाँ होती है तो अनुभूतियों के रंग भी होते हैं।
जब तक मनुष्य में चेतना है , अनुभव होते रहेंगे अनुभूतियाँ होती रहेंगी ।कभी सुख
की , कभी दुख की .कभी मिलन की ,कभी जुदाई की। । यही अनुभूतियॊ के रंग हैं यही जीवन
के रंग भी हैं, इन्द्रधनुष के रंगों की तरह बँधे हुए। जीवन क्या है? अनुभूतियों का एक -“ कैलिडियोस्कोप”-है । जितनी बार घुमाइए हर बार एक नए रंग
का ’पैटर्न’ बनता नज़र आता है , कभी आशा का , कभी निराशा का। यानी
’शम्मअ’ हर रंग में जलती है सहर होने तक-----------[[ग़ालिब ]
ये अनुभूतियाँ मुक्त बदलियों की तरह मानस पटल पर किस कोने से, कहाँ से उमड़्ती है , बरसती हैं , तन-मन भिगोती हैं और फिर कहाँ चली जाती हैं-पता नहीं। कभी कभी तो मात्र उमड़ती-घुमड़ती भर है और-बिना बरसे ही चली जाती है तरसा कर। इन बदलियों के रंग भी मेरी वेदनाऒ के रंग की तरह , कभी श्वेत,कभी श्याम कभी भूरे , कभी घनी वेदनाओं की तरह काले काले।और जब बरस जाती हैं तो मन हल्का हो जाता है
--रुई के फ़ाहे की तरह। -शुभ्र-धवल निश्छल मन ।
कुछ अनुभूतियाँ इसी संग्रह से इस
पटल पर समय समय पर लगाता रहा हूँ और आप लोगों का आशीर्वाद प्राप्त होता रहा है ।
इसी
संग्र्ह से कुछ और अनुभूतियाँ आप लोगों के
के लिए लगा रहा हूँ –शायद पसन्द आए।
पर्वत जितना धीर-अटल हो
उसके अन्दर भी इक दिल है
दर्द उसे भी होता रहता
दुनिया क्यों इस से ग़ाफ़िल है ।
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कतरा क़तरा आँसू मेरे
जीवन के मकरन्द बनेंगे
सागर से भी गहरे होंगे
पीड़ा से जब छन्द बनेंगे।
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सच ही कहा था तुम ने उस दिन
"जा तो रही हूँ सजल नयन
से"
छन्द छन्द बन कर उतरूँगी
गीत लिखोगे अगर लगन से ।"
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सच का
साथ न छोड़ा मैने,
द्वन्द रहा आजीवन मन में.
साँस
साँस बन हर पल उतरी,
’अनुभूति’
मेरे जीवन में ।
Xx xx xx
प्रेम समर्पण एक साधना
चलता नहीं दिखावा इसमें
पाने की कुछ चाह न रहती
बस देना ही देना जिसमें
काल चक्र को चलना ही है
कोई गिरता, उठता कोई
जीवन और मरण का सच है
कोई सोता ,जगता कोई ।
मेरे मन की इस दुनिया में
एक तुम्हारी भी दुनिया थी
आज वहाँ बस राख बची है
जहाँ कभी अपनी बगिया थी
ऐसी ही बहुत सी अनुभूतियाँ इस संग्रह में संग्रहित हैं ।
कुछ इश्क-ए-हक़ीक़ी की , कुछ
इश्क़-ए-मजाज़ी की।
कुछ ग़म-ए-जानां की, कुछ ग़म-ए-दौरां की ।
आशा है यह संग्रह आप को पसन्द आएग।
सादर
-आनन्द.पाठक-
8800927181