ग़ज़ल 224[88D]
2122—1212—22
एक रिश्ता
जो ग़ायबाना1 है ,
उम्र भर
वह हमें निभाना है ।
इतनी ताक़त
दे ऎ ख़ुदा मेरे !
आज उनसे
नज़र मिलाना है ।
शेख जी ! फिर
वही रटी बातें ?
और क्या कुछ नया बताना है ?
रंग-सा घुल
गई समन्दर में ,
बूँद का
बस यही फ़साना है ।
वो
पुकारेगा जब कभी मुझको,
काम हो लाख
, छोड़ जाना है।
तेरी आदत
वही पुरानी है -
ज़ख़्म देकर
के भूल जाना है ।
बात सबकी
सुना करो ’आनन’ ,
जो कहे
दिल वो आज़माना है ।
-आनन्द.पाठक-
1- 1- परोक्ष
में. छिपा छिपा
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