ग़ज़ल 223 [87D]
1222---1222---1222---1222
अनाड़ी
था, नया था, राहबर था बदगुमाँ मेरा
कि
उसकी रहबरी में लुट गया है कारवाँ मेरा
धुआँ
जब फेफड़ॊ में था, जलन आँखों में थी उसकी
मिली जी भर खुशी उसको जला जब आशियाँ मेरा
ज़माने की हवाओं से मुतासिर हो गया वह भी
कि
अपनी पीठ खुद ही थपथापाता हमज़ुबाँ मेरा
चमन
मेरा, वतन मेरा, सभी मिल बैठ कर सोचें
जहाँ
तक भी हवा जाए ,ये महके गुलसिताँ मेरा
ग़म-ए-दौरां,
ग़म-ए-जानाँ, कभी मज़लूम के आँसू
यही
हर्फ़-ए-सुख़न मेरा, यही रंग-ए-बयाँ मेरा
अगर
दिल तोड़ दे कोई, बिना पूछे चले आना
मुहब्बत
से भरा है दिल ये बह्र-ए-बेकराँ1
मेरा
कहाँ
मिलता है कोई अब यहाँ दिल खोल कर ’आनन’
किसे
फ़ुरसत पड़ी है जो सुने दर्द-ए-निहां2 मेरा
-आनन्द.पाठक-
1-
अत्यधिक, असीम
सागर 2- दिल का छिपा हुआ दर्द
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