बुधवार, 13 अप्रैल 2022

ग़ज़ल 226 [90 D] : बुजुर्गों की दुआएँ हो तो

 ग़ज़ल 226 [90 D]


1222---1222--1222--1222


बुजुर्गों की दुआएँ  हो तो हासिल हर ख़ुशी होगी

उन्हीं से रहबरी होगी, उन्हीं से रोशनी  होगी


न हुस्ना हमसफ़र कोई, न काँधे पर टिका सर हो

मुहब्ब्त के बिना भी ज़िंदगी क्या ज़िंदगी होगी


हमें मालूम है उनकी बुलंदी की हक़ीक़त क्या

क़लम गिरवी रखी होगी ज़ुबाँ उनकी  बिकी होगी


वो आया था यही कह कर बदल देगा ज़माने को

सियासत में उलझ कर बात उसकी रह गई होगी


समझ कर भी न समझो तो फिर आगे और क्या कहना

तुम्हारी सोच में शायद कहीं कोई कमी होगी


जो नफ़रत से भरा हो दिल नज़र कुछ भी न आएगा

मुहब्ब्बत से जो भर लोगे ख़ुदा की बंदगी होगी


सही क्या है ग़लत क्या है न समझोगे कभी ’आनन’

कि जबतक आँख पर ख़ुदगर्ज़ की पट्टी बँधी होगी



-आनन्द पाठक-


कोई टिप्पणी नहीं: