रविवार, 31 जनवरी 2016

चन्द माहिए: क़िस्त 28

चन्द माहिए : क़िस्त 28


:1:
हर बुत में नज़र आया
 वो ही दिखा सब में
जब दिल में उतर आया

:2:

जाना है तेरे दर तक
ढूँढ रहा हूँ मैं
इक राह तेरे घर तक

:3:

पंछी ने कब माना
मन्दिर मस्जिद का
होता है अलग दाना

:4:

किस मोड़ पे आज खड़े
क़त्ल हुआ इन्सां
मज़हब मज़ह्ब से लड़े

:5;

इक दो अंगारों से
 क्या समझोगे ग़म
दरिया का ,किनारों से

-आनन्द.पाठक-

[सं 01-10-20 ]


बुधवार, 27 जनवरी 2016

एक ग़ज़ल 76[21] : उन्हें हाल अपना सुनाते भी क्या..

मुतक़ारिब मुसम्मन सालिम महज़ूफ़
फ़ऊलुन--फ़ऊलुन---फ़ऊलुन--फ़’अल
122-------122----------122-------12
-----

उन्हें हाल अपना सुनाते भी क्या
भला सुन के वो मान जाते भी क्या

अँधेरे  उन्हें रास आने  लगे
चिराग़-ए-ख़ुदी वो जलाते भी क्या

अभी ख़ुद परस्ती में वो मुब्तिला
उसे हक़ शनासी बताते भी क्या

नए दौर की  है नई रोशनी
पुरानी हैं रस्में ,निभाते भी क्या

जहाँ भी गया मैं  गुनह साथ थे
नदामत जदा,पास जाते भी क्या

उन्हें ख़ुद सिताई से फ़ुरसत नहीं
वो सुनते भी क्या और सुनाते भी क्या

दम-ए-आख़िरी जब कि निकला था दम
पता था उन्हें, पर वो आते  भी क्या

जहाँ दिल से दिल की न गाँठें खुले
वहाँ हाथ ’आनन’ मिलाते भी क्या

-आनन्द.पाठक-


शब्दार्थ;-
ख़ुदपरस्ती =अपने आप को ही सब कुछ समझने का भाव
मुब्तिला = ग्रस्त ,जकड़ा हुआ
हक़शनासी =सत्य व यथार्थ को पहचानना
नदामत जदा = लज्जित /शर्मिन्दा
खुदसिताई =अपने मुँह से अपनी ही प्रशंसा करना


[सं 30-06-19]

रविवार, 24 जनवरी 2016

एक ग़ज़ल 75[20] : वो जो राह-ए-हक़ चला है उम्र भर....

फ़ाइलातुन---फ़ाइलातुन--फ़ाइलुन
2122----2122---212
रमल मुसद्दस महज़ूफ़
--------

वो जो राह-ए-हक़ चला है उम्र भर
साँस ले ले कर मरा है  उम्र भर

जुर्म इतना है ख़रा सच बोलता 
कठघरे में जो खड़ा है  उम्र भर

उम्र भर सब पर यकीं करता रहा
अपने लोगों  ने छला है उम्र भर

मुख्य धारा से अलग धारा है यह
खुद का खुद से सामना है उम्र भर

घाव दिल के जो दिखा पाता ,कभी
स्वयं से कितना  लड़ा  है उम्र भर

राग दरबारी नहीं है गा सका
इसलिए सूली चढ़ा  है उम्र भर

झू्ठ की महफ़िल सजी ’आनन’ जहाँ
सत्य ने पाई सज़ा  है उम्र भर

-आनन्द पाठक-
~

[सं 30-06-19]

मंगलवार, 12 जनवरी 2016

चन्द माहिया :क़िस्त 27



:1:
इठला कर चलता है
जैसा हो मौसम
ईमान बदलता है

:2:
एक आस अभी बाक़ी
तेरे आने तक
इक साँस अभी  बाक़ी

:3:
क्या रंग-ए-क़यामत है
लहरा कर चलना
 कुछ उसकी आदत है



:4:
गर्दिश में रहे जब हम
दूर खड़ी दुनिया
पर साथ खड़े थे ग़म

:5:
कब एक सा चलता है
सुख-दुख का मौसम
मौसम है, बदलता है

-आनन्द.पाठक-
[सं  13-06-18]

शनिवार, 2 जनवरी 2016

एक ग़ज़ल 74[19] : अगर आप...


122---122---122---122

अगर आप जीवन  में होते न दाखिल
कहाँ ज़िन्दगी थी ,किधर था मैं गाफ़िल

न वो आश्ना है  ,न हम जानते  हैं
मगर एक रिश्ता अज़ल से है हासिल

नुमाइश नहीं है ,अक़ीदत है दिल की
ये उलफ़त भी होती  इबादत  में शामिल

हज़ारों तरीक़ों से वो  आजमाता
खुदा जाने कितने हैं बाक़ी मराहिल

मसीहा न कोई ,न कोई मुदावा 
कहाँ ले के जाऊँ ये टूटा हुआ दिल

जो पूछा कि क्या हैं मुहब्बत  की रस्में?
दिया रख गया वो हवा के मुक़ाबिल

इसी फ़िक़्र में उम्र गुज़री है "आनन’
ये दरिया,ये कश्ती ,ये तूफ़ां ,वो साहिल

-आनन्द.पाठक-


शब्दार्थ
मराहिल  =पड़ाव /ठहराव [ ब0ब0 - मरहला]
आशना    =परिचित /जान-पहचान
अज़ल  से  = अनादि काल से
अक़ीदत  = दृढ़ विश्वास
मुदावा     =इलाज

[सं 30-06-19]

शुक्रवार, 1 जनवरी 2016

चन्द माहिया :क़िस्त 26


चन्द माहिया : क़िस्त 26
 
 :1:
इतना तो कर साथी
आ जा चुपके से 
कर दिल में घर साथी


:2:

साँसो का बन्धन है
टूटेगा कैसे ?
रिश्ता जो पावन है

:3:

दिल और धड़कने दो
रुख पर है पर्दा
कुछ और सरकने दो

:4:

अपनी तोआदत है
हुस्न परस्ती में
दिल राह-ए-जियारत है

:5:

करता हूँ ख़ता फिर भी
लाख ख़फ़ा हो कर 
करता वो वफ़ा फिर भी

-आनन्द.पाठक-


[सं 13-06-18]