चन्द माहिए : क़िस्त 28
:1:
हर बुत में नज़र आया
वो ही दिखा सब में
जब दिल में उतर आया
:2:
जाना है तेरे दर तक
ढूँढ रहा हूँ मैं
इक राह तेरे घर तक
:3:
पंछी ने कब माना
मन्दिर मस्जिद का
होता है अलग दाना
:4:
किस मोड़ पे आज खड़े
क़त्ल हुआ इन्सां
मज़हब मज़ह्ब से लड़े
:5;
इक दो अंगारों से
क्या समझोगे ग़म
दरिया का ,किनारों से
-आनन्द.पाठक-
हर बुत में नज़र आया
वो ही दिखा सब में
जब दिल में उतर आया
:2:
जाना है तेरे दर तक
ढूँढ रहा हूँ मैं
इक राह तेरे घर तक
:3:
पंछी ने कब माना
मन्दिर मस्जिद का
होता है अलग दाना
:4:
किस मोड़ पे आज खड़े
क़त्ल हुआ इन्सां
मज़हब मज़ह्ब से लड़े
:5;
इक दो अंगारों से
क्या समझोगे ग़म
दरिया का ,किनारों से
-आनन्द.पाठक-
[सं 01-10-20 ]
2 टिप्पणियां:
सुन्दर रचनाएं!
धन्यवाद प्रभाकर जी
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