अनुभूतियाँ 181/68
721
बार बार क्या कहना है अब
समझाना तुमको मुश्किल है
अपनी ज़िद में दिल ये तुम्हारा
सच सुनने के नाक़ाबिल है ।
722
चाँद सितारे दर्या झरना
कहते सबमे झलक उसी की
जिस दिन दिल ने मान लिया तो
फिर न सुनेगा बात किसी की
723
कौन यहाँ है जो न दुखी है
किसके अपने नहीं मसाइल
आशा की जब एक किरन हो
दूर कहाँ फिर रहता साहिल
724
रोज रोज की किचकिच किचकिच
कर देते हैं रिश्ते बोझिल
खुशबू फैले कोने कोने
समझदार जब होते दो दिल
-आनन्द पाठक-