अनुभूतियाँ 181/68
721
बार बार क्या कहना है अब
समझाना तुमको मुश्किल है
अपनी ज़िद में दिल ये तुम्हारा
सच सुनने के नाक़ाबिल है ।
एक टिप्पणी भेजें
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें