मंगलवार, 29 अप्रैल 2025

अनुभूतियाँ 181/68

 अनुभूतियाँ 181/68


721

बार बार क्या कहना है अब

समझाना तुमको मुश्किल है

अपनी ज़िद में दिल ये तुम्हारा

सच सुनने के नाक़ाबिल है ।

722

चाँद सितारे दर्या झरना

कहते सबमे झलक उसी की

जिस दिन दिल ने मान लिया तो

फिर न सुनेगा बात किसी की

723

कौन यहाँ है जो न दुखी है

किसके अपने नहीं मसाइल

आशा की जब एक किरन हो

दूर कहाँ फिर रहता साहिल

724

रोज रोज की किचकिच किचकिच

कर देते हैं रिश्ते बोझिल

खुशबू फैले कोने कोने

समझदार जब होते दो दिल


-आनन्द पाठक-

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