अनुभूतियाँ 182/69
:1:
नाम तुम्हारा ले कर कोई
ढोंगी बाबा भरमाता है ।
शायद उसको पता नहीं है
मेरा तुम से क्या नाता है ।
:2:
रात भले हो जितनी लम्बी
सूरज को फिर उगना ही है।
आशा की किरणें उतरेंगी
घना अँधेरा छँटना ही है ।
:3:
युद्ध स्वयं ही लड़ना पड़ता
अपने बल पर, अपने दम पर
जीत उसी को हासिल होती
जो रहता है सत्य, धरम पर ।
:4:
जिस दिन तुम से बात न होती
वो दिन फिर बेगाना लगता
मन खोया खोया सा रहता
अपना घर अनजाना लगता ।
-आनन्द.पाठक-
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