अनुभूतियाँ 182/69
:1:
नाम तुम्हारा ले कर कोई
ढोंगी बाबा भरमाता है ।
शायद उसको पता नहीं है
मेरा तुम से क्या नाता है ।
:2:
रात भले हो जितनी लम्बी
सूरज को फिर उगना ही है।
आशा की किरणें उतरेंगी
घना अँधेरा छँटना ही है ।
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