शनिवार, 3 मई 2025

अनुभूतियाँ 182/69

 अनुभूतियाँ 182/69

:1:

नाम तुम्हारा ले कर कोई

ढोंगी बाबा भरमाता है ।

शायद उसको पता नहीं है

मेरा तुम से क्या नाता है ।


:2:

रात भले हो जितनी लम्बी

सूरज को फिर उगना ही है।

आशा की किरणें उतरेंगी

घना अँधेरा छँटना ही है ।

कोई टिप्पणी नहीं: