गीत 14[16]
देवता बनना कहीं आसान है ,बोझ फूलों का उठाना ही कठिन |
डूबने को हर किनारे मिल गए
पार लगाने का नहीं कोई किनारा
कल जो अपने थे पराए हो गए
गर्दिशों में जब रहा मेरा सितारा
दीप बन जलना कहीं आसान है,उम्र भर पीना अँधेरा ही कठिन
जिंदगी अनुबंध में जीते रहे
फूल बस सीमा नहीं है गंध की
जो मिला हैं प्यार पीडा में मिला हैं
जिन्दगी बस नाम है सौगंध की
बन्धनों में बंध गए आसान है,तोड़ना बंधन यहाँ पर है कठिन
अश्रु के दो बूँद सागर हो गये
भाव मन का ही हिमालय बन गया
जब चढाये साधना के अर्ध्य पावन
राह का पत्थर शिवालय बन गया
नीलकंठ बनना कहीं आसान है,पी हलाहल मुस्कराना ही कठिन
देवता बनना कहीं आसान है .....
---आनन्द पाठक-
डूबने को हर किनारे मिल गए
पार लगाने का नहीं कोई किनारा
कल जो अपने थे पराए हो गए
गर्दिशों में जब रहा मेरा सितारा
दीप बन जलना कहीं आसान है,उम्र भर पीना अँधेरा ही कठिन
जिंदगी अनुबंध में जीते रहे
फूल बस सीमा नहीं है गंध की
जो मिला हैं प्यार पीडा में मिला हैं
जिन्दगी बस नाम है सौगंध की
बन्धनों में बंध गए आसान है,तोड़ना बंधन यहाँ पर है कठिन
अश्रु के दो बूँद सागर हो गये
भाव मन का ही हिमालय बन गया
जब चढाये साधना के अर्ध्य पावन
राह का पत्थर शिवालय बन गया
नीलकंठ बनना कहीं आसान है,पी हलाहल मुस्कराना ही कठिन
देवता बनना कहीं आसान है .....
---आनन्द पाठक-