शुक्रवार, 26 जून 2009

गीत 14 [16]: देवता बनना कहीं आसान है....

गीत 14[16]

देवता बनना कहीं आसान है ,बोझ फूलों का उठाना ही कठिन |

डूबने को हर किनारे मिल गए
पार लगाने का नहीं कोई किनारा
कल जो अपने थे पराए हो गए
गर्दिशों में जब रहा मेरा सितारा
दीप बन जलना कहीं आसान है,उम्र भर पीना अँधेरा ही कठिन

जिंदगी अनुबंध में जीते रहे
फूल बस सीमा नहीं है गंध की
जो मिला हैं प्यार पीडा में मिला हैं
जिन्दगी बस नाम है सौगंध की
बन्धनों में बंध गए आसान है,तोड़ना बंधन यहाँ पर है कठिन

अश्रु के दो बूँद  सागर हो गये
भाव मन का ही हिमालय बन गया
जब चढाये साधना के अर्ध्य पावन
राह का पत्थर शिवालय बन गया
नीलकंठ बनना कहीं आसान है,पी हलाहल मुस्कराना ही कठिन
देवता बनना कहीं आसान है .....

---आनन्द पाठक-

7 टिप्‍पणियां:

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

आँख के दो बूँद सागर हो गए
भावना मन का हिमालय बन गया
जब चढाये साधना के अर्ध्य पावन
राह का पत्थर शिवालय बन गया
नीलकंठ बनना कहीं आसान है,पी हलाहल मुस्कराना ही कठिन
देवता बनना कहीं आसान है .....

bahut pyaara geet, sunder bol, bahut bahut badhaai.

ओम आर्य ने कहा…

sumadhure ras barasatee is kawita ke bhaw atisundar hai...........badhaaee

सर्वत एम० ने कहा…

गीत को एक बार पुनः लिखें .सुधार की कुछ ज़्यादा ही गुंजाइश है

Unknown ने कहा…

man bhar aaya ...itta abhinav geet

itta sundar aur sukomal geet

badhaai !

M VERMA ने कहा…

जिन्दगी बस नाम है सौगंध की
yatharth ka bayan yatharth dhang se.
sunder

आनन्द पाठक ने कहा…

आ० सरवत जी

आप का इशारा समझ गया.कुछ भूलवश त्रुटियाँ थीं अब सुधार कर लिया है
इन दो पंक्तियों को
" आँख के दो बूँद सागर हो गये........"में व्याकरण दोष था
को शुद्ध रूप में पुन: ऊपर लिख दिया है .हो सकता है सुधार कि गुंजाईश अब भी हो तो निसंकोच बतायें
ध्यान दिलाने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद

सादर
-आनन्द

आनन्द पाठक ने कहा…

आ०स्वप्न जी/ओम जी/अलबेला जी/वर्मा जी

आप सभी मित्र गणों का बहुत-बहुत धन्यवाद कि रचना पसन्द आई
उत्साह वर्धन के आभारी
---आनन्द