शुक्रवार, 19 जून 2009

हास्यिका :अथ श्री चमचा पुराण : कुछ दोहे 03

 चमचा पुराण : कुछ दोहे

राजनीति चमचागिरी , यही सार यही तत्व
जितने चमचे साथ हों  ,उतना अधिक महत्त्व

मनसा वाचा कर्मणा ,नहीं हुआ जो भक्त
वह चमचा रह जाएगा .आजीवन अभिशप्त

नेता से पहले मिले ,चमचा जी से आप
'सूटकेस' का वज़न देख ,कारज लेते भांप

चमचों के दो वर्ग हैं , 'घर-घूसर' और 'भक्त '
घर-घूसर निर्धन करे , भक्त चूस ले रक्त

'घर-घूसर' घर में घुसे ,पीकदान ले आय
तेल लगा मालिश करे. नेता जी का काय

भक्त चरण में लोटता .नेता जी का दास
जितनी आवे 'डालियाँ' .रख ले अपने पास

'भैया''मालिक'मालकिन' .कहता हो दिन-रात
चरणों में बस लोटता , चाहे खावे लात

-आनन्द.पाठक-

|| अथ श्री चमचा पुराण प्रथमोध्याय ||

6 टिप्‍पणियां:

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

bahut sunder, agle adhyay ki prateeksha men.

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

चमचों के गुण बहुत से तुमने दिए सिखाई।
धन्यवाद है आपका, आनंद पठक भाई॥;))

वीनस केसरी ने कहा…

बहुत मजेदार

वीनस केसरी

शरद तैलंग ने कहा…

आनन्द जी, दोहे बहुत अच्छे है किन्तु कहीं कहीं दोहोंं के जो नियम है जैसे प्रत्येक पंक्ति में दो चरण होते है जिनमें 13 और 11 मात्राएं होती तथा अन्त में गुरू एवं लघु होना चाहिए उसका पालन नहीं हो रहा है ।
शरद तैलंग

आनन्द पाठक ने कहा…

आ0 तैलंग जी
धन्यवाद आप का। आप के आदेशानुसार एक बार पुन: इन दोहों को देखता हूँ ।
सादर

आनन्द पाठक ने कहा…

आ0 स्वप्न जी.परमजीत जी,वीनस जी ,शरद जी

आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद
सादर