ग़ज़ल 005-ओके
फ़ाइलुन--फ़ाइलुन--फ़ाइलुन
212--------212-------212
बह्र-ए-मुतदारिक मुसद्दस सालिम
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ग़ज़ल
जब से तुम से मिली जिन्दगी
सांस लेने लगी जिन्दगी
रूह अपनी निखरने लगी
आईने-सी लगी जिन्दगी
कितने सपने लगी देखने
चार दिन की बची जिन्दगी
उनके दीदार की जुस्तजू
मेरी दीवानगी ज़िन्दगी
212--------212-------212
बह्र-ए-मुतदारिक मुसद्दस सालिम
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ग़ज़ल
जब से तुम से मिली जिन्दगी
सांस लेने लगी जिन्दगी
रूह अपनी निखरने लगी
आईने-सी लगी जिन्दगी
कितने सपने लगी देखने
चार दिन की बची जिन्दगी
उनके दीदार की जुस्तजू
मेरी दीवानगी ज़िन्दगी
यह तो है इश्क की इब्तिदा
और बेख़ुद हुई ज़िन्दगी
जब न तुम ही मेरे हमसफ़र
बेसबब सी लगी जिन्दगी
अब न जाएँ ये ’आनन’ कहीं
छोड तेरी गली ज़िंदगी ।
-आनन्द.पाठक--
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