फ़ाइलुन--फ़ाइलुन--फ़ाइलुन
212--------212-------212
बह्र-ए-मुतदारिक मुसद्दस सालिम
------------------------
ग़ज़ल
तुम मिले तो मिली जिन्दगी
सांस लेने लगी जिन्दगी
रूह से जब मिली रूह तो
आईने-सी लगी जिन्दगी
कितने सपने लगी देखने
चार दिन की बची जिन्दगी
उनके दीदार की चाह में
रफ़्ता रफ़्ता कटी ज़िन्दगी
है अभी इश्क की इब्तिदा
और बेख़ुद हुई ज़िन्दगी
जब न तुम ही मेरे हमसफ़र
बेसबब सी लगी जिन्दगी
अब न जायेगा ’आनन’ कहीं
छोड़ तेरी गली, ज़िन्दगी
-आनन्द.पाठक--
[सं 26-07-2020]
212--------212-------212
बह्र-ए-मुतदारिक मुसद्दस सालिम
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ग़ज़ल
तुम मिले तो मिली जिन्दगी
सांस लेने लगी जिन्दगी
रूह से जब मिली रूह तो
आईने-सी लगी जिन्दगी
कितने सपने लगी देखने
चार दिन की बची जिन्दगी
उनके दीदार की चाह में
रफ़्ता रफ़्ता कटी ज़िन्दगी
है अभी इश्क की इब्तिदा
और बेख़ुद हुई ज़िन्दगी
जब न तुम ही मेरे हमसफ़र
बेसबब सी लगी जिन्दगी
अब न जायेगा ’आनन’ कहीं
छोड़ तेरी गली, ज़िन्दगी
-आनन्द.पाठक--
[सं 26-07-2020]
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