गुरुवार, 21 सितंबर 2023

ग़ज़ल 341[17F] : तेरी गलियों में जब से हैं जाने लगे

 ग़ज़ल 341[17F]

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तेरी गलियों में जब से हैं जाने लगे

जिस्म से रूह तक मुस्कराने लगे


दूर से जब नज़र आ गया बुतकदा

घर तुम्हारा समझ  सर झुकाने लगे


इश्क़ दर्या है जिसका किनारा नही

यह समझने में मुझको ज़माने लगे


देखने वाला ही जब न बाकी रहा

किसकी आमद में खुद को सजाने लगे


ये ज़रूरी नहीं सब ज़ुबां ही कहे

दर्द आँखों से कुछ कुछ बताने लगे


तुमने मुझको न समझा न जाना कभी

ग़ैर की बात में  क्यों तुम आने लगे


राह-ए-हक़ से तुम ”आनन’ न गुज़रे कभी

इसलिए सब हक़ीक़त फ़साने लगे ।


-आनन्द.पाठक-

सं 28-06-24

गुरुवार, 14 सितंबर 2023

ग़ज़ल 340 [16F]: क्यों अँधेरों में जीते हो मरते हो तुम

 ग़ज़ल  340[16F]

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क्यों अँधेरों में जीते हो मरते हो तुम

रोशनी की नहीं बात करते हो तुम ।


रंग चेहरे का उड़ता क़दम हर क़दम

सच की गलियों से जब भी गुज़रते हो तुम


कौन तुम पर भरोसा करे ? क्यों करे?

जब कि हर बात से ही मुकरते हो तुम


राह सच की अलग, झूठ की है अलग

राह ए हक  पर भला कब ठहरते हो तुम ?


वो बड़े लोग हैं, उनकी दुनिया अलग

बेसबब क्यों नकल उनकी करते हो तुम ?


वक़्त आने पे लेना कड़ा फ़ैसला

उनके तेवर से काहे को डरते हो तुम ?


तुमको उड़ना था ’आनन; नहीं उड़ सके

तो परिंदो के पर क्यों कतरते हो तुम ?


-- आनन्द,पाठक--

सं 28-06-24


शनिवार, 9 सितंबर 2023

ग़ज़ल 339 [15F] : तुमने जैसा कहा मैने वैसा कहा

ग़ज़ल 339[15F]

212---212---212---212--


तुम ने जैसा कहा मैने वैसा किया

फ़िर बताओ कि मैने बुरा क्या किया ?


हाथ की तुम लकीरें रहे देखते

बाजुओं पर न तुमने भरोसा किया ।


ध्यान में वह नहीं था, कोई और था

बस दिखावे का ही तुमने सज्दा किया ।


इश्क़ क्या चीज़ है, तुमको क्या है पता

इश्क़ के नाम पर बस तमाशा किया ।


राह-ए-हक़ में क़दम दो क़दम क्या चले

चन्द लोगों ने मुझ से किनारा किया ।


क्यों जुबाँ लड़खड़ाने लगी आप की

आप ने कौन सा सच से वादा किया ।


बात ’आनन’ की चुभने लगी आप को

सच की जानिब जब उसने इशारा किया ।


-आनन्द.पाठक--

सं 28-06-24


सोमवार, 4 सितंबर 2023

ग़ज़ल 338[14F] :आप से अर्ज ए हाल है साहिब

ग़ज़ल 338 [14F]
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आप से अर्ज-ए-हाल है, साहिब !
जिंदगी पाएमाल  है साहिब !

रोज जीना है रोज मरना है
यह भी खुद मे कमाल है, साहिब !

अब फरिश्ते कहाँ उतरते हैं ,
आप का क्या खयाल है साहिब ?

रोशनी देगा या जला देगा-
हाथ उसके मशाल है, साहिब !

सिर्फ टी0वी0 पे दिन दिखे अच्छे, 
सबको इसका मलाल है साहिब !

जिंदगी शौक़ है कि मजबूरी ?
यह भी कैसा सवाल है, साहिब !

लोग 'आनन'  को हैं बुरा कहते
चन्द लोगों की चाल है साहिब !

-आनन्द पाठक-

सं 28-06-24

शनिवार, 2 सितंबर 2023

ग़ज़ल 337[13 F] : खुशियों का ज़िंदगी में अभी सिलसिला नहीं

 ग़ज़ल 337 [13F]

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खुशियों का ज़िंदगी में अभी सिलसिला नहीं

मैने भी ज़िंदगी से अभी कुछ कहा नहीं ।


हालात-ए-ज़िंदगी से कोई ग़मज़दा न हो

ऐसा तो कोई शख़्स अभी तक मिला नहीं ।


नफ़रत की आँधियॊं से उड़ा आशियाँ  मेरा

ज़ौर-ओ-सितम से एक भी तिनका बचा नहीं


दीवार थी गुनाह की दोनों के बीच में ,

वरना था दर्मियान कोई फ़ासला नहीं ।


वैसे कहानी आप की तो बारहा सुना

फिर भी नई नई सी लगी, दिल भरा नहीं ।


नदिया में प्यास की न तड़प ही रही अगर

सागर से फिर मिलन का असर खुशनुमा नहीं ।


’आनन’ ख़याल-ओ-ख़्वाब में इतना न डूब जा

दुनिया की साज़िशों का तुम्हें हो पता नही ।


-आनन्द पाठक-

सं 28-06-24