सोमवार, 4 सितंबर 2023

ग़ज़ल 338[14F] :आप से अर्ज ए हाल है साहिब

ग़ज़ल 338 [14F]
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आप से अर्ज-ए-हाल है, साहिब !
जिंदगी पाएमाल  है साहिब !

रोज जीना है रोज मरना है
यह भी खुद मे कमाल है, साहिब !

अब फरिश्ते कहाँ उतरते हैं ,
आप का क्या खयाल है साहिब ?

रोशनी देगा या जला देगा-
हाथ उसके मशाल है, साहिब !

सिर्फ टी0वी0 पे दिन दिखे अच्छे, 
सबको इसका मलाल है साहिब !

जिंदगी शौक़ है कि मजबूरी ?
यह भी कैसा सवाल है, साहिब !

लोग 'आनन'  को हैं बुरा कहते
चन्द लोगों की चाल है साहिब !

-आनन्द पाठक-

सं 28-06-24

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