ग़ज़ल 338 [14F]
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जिंदगी पाएमाल है साहिब !
रोज जीना है रोज मरना है
यह भी खुद मे कमाल है, साहिब !
अब फरिश्ते कहाँ उतरते हैं ,
आप का क्या खयाल है साहिब ?
रोशनी देगा या जला देगा-
हाथ उसके मशाल है, साहिब !
सिर्फ टी0वी0 पे दिन दिखे अच्छे,
सबको इसका मलाल है साहिब !
जिंदगी शौक़ है कि मजबूरी ?
यह भी कैसा सवाल है, साहिब !
लोग 'आनन' को हैं बुरा कहते
चन्द लोगों की चाल है साहिब !
-आनन्द पाठक-
सं 28-06-24
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