मंगलवार, 31 जुलाई 2018

चन्द माहिया : क़िस्त 50

चन्द माहिया : क़िस्त 50

1

हर पल जो गुज़र जाता
छोड़ के कुछ यादें
फिर लौट के कब आता ?

2
होता भी अयाँ कैसे
दिल तो ज़ख़्मी है
कहती भी ज़ुबाँ कैसे ?

3
 तुम ने मुँह फेरा है
टूट गए सपने
दिन में ही अँधेरा है

4
शोलों को भड़काना
ये भी सज़ा कैसी
भड़का के चले जाना

5

कितने बदलाव जिए
सोच रहा हूँ मैं
कागज की नाव लिए


-आनन्द.पाठक-

बुधवार, 25 जुलाई 2018

गीत 39 : मैं नहीं गाता हूँ

मन के अन्दर एक अगन है ,रह रह गाती है
मैं नहीं गाता हूँ.......

बदली आ आ कर भी घर पर ,नहीं बरसती है
प्यासी धरती प्यास अधर पर लिए तरसती है
जा कर बरसी और किसी घर ,यहाँ नहीं बरसी
और ज़िन्दगी आजीवन  बस ,राहें   तकती  है

आशा की जो शेष किरन है ,राह दिखाती है
मन के अन्दर एक अगन है ,रह रह  गाती है।
 मैं नहीं गाता हूँ........

नदी किनारे बैठ कोई जब  तनहा गाता है
कल कल करती लहरों से वो क्या बतियाता है ?
लहरें काट रहीं है तट को,तट भी लहरों को
इसी समन्वय क्रम में जीवन चलता जाता है

पीड़ा है जो आँसू बन कर ढलती जाती है
मन के अन्दर एक अगन है ,रह रह गाती है।
मैं नहीं गाता हूँ.......

टेर रहा है समय अनागत ,मन घबराता  है
गोधूली बेला में मुझको कौन बुलाता  है ?
जाने की तैयारी में हूँ ,क्या क्या छूट गया
जो भी है बस एक भरम है ,जग भरमाता है

धुँधली धुँधली याद किसी की बस रह जाती है
मन के अन्दर एक अगन है ,रह रह  गाती है
मैं नहीं गाता हूँ........

-आनन्द.पाठक-

[सं 30-05-18]

शनिवार, 21 जुलाई 2018

चन्द माहिया : क़िस्त 49

चन्द माहिया : क़िस्त 49

:1:
ये इश्क़ है जान-ए-जां
तुम ने क्या समझा
ये राह बड़ी आसां ?

:2:
ख़ामोश निगाहें भी
कहती रहती हैं
कुछ मन की व्यथायें भी

:3:
कुछ ग़म की सौगातें
जब से गई हो तुम
आँखों में कटी रातें


:4:
वो जाने  किधर रहता
एक वही तो है
जो सब की खबर रखता

:5:
क्या जानू किस कारन ?
सावन भी बीता
आए न मेरे साजन


-आनन्द.पाठक-