गुरुवार, 31 दिसंबर 2009

गीत 22 : नववर्ष तुम्हारा अभिनन्दन ......

हे आशाओं के प्रथम दूत ! नव-वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन

सौभाग्य हमारा है इतना
इस संधि-काल के साक्षी हैं
जो बीता जैसा भी बीता
पर स्वर्ण-काल आकांक्षी है

यह भारत भूमि हमारी भगवन! हो जाए कानन-नंदन
नव-वर्ष तुम्हारा............

ले आशाओं की प्रथम किरण
हम करें नए संकल्प वरण
हम प्रगति-मार्ग रखते जाएँ
विश्वास भरे नित नए चरण

भावी पीढ़ी कल्याण हेतु आओ मिल करे मनन -चिंतन
नव-वर्ष तुम्हारा ............

अस्थिर करने को आतुर हैं
कुछ बाह्य शक्तियाँ भारत को
आतंकवाद का भस्मासुर
दे रहा चुनौती ताकत को

विध्वंसी का विध्वंस करें ,हम करे सृजन का सिरजन
नव-वर्ष तुम्हारा..................

लेकर अपनी स्वर्णिम किरणें
लेकर अपना मधुमय बिहान
जन-जग मानस पर छा जाओ
हे ! मानव के आशा महान

हम स्वागत क्रम में प्रस्तुत है , ले कर अक्षत-रोली-चंदन
नव-वर्ष तुम्हारा ,....

हम श्वेत कबूतर के पोषक
हम गीत प्रेम का गाते है
हम राम-कृष्ण भगवान्
बुद्ध का चिर संदेश सुनाते हैं

'सर्वे भवन्तु सुखिन:' कल्याण विश्व का संवर्धन
नव-वर्ष तुम्हारा ..........

शनिवार, 19 दिसंबर 2009

एक ग़ज़ल 08 [18]: ईमान कहाँ देखा .....!

मफ़ऊलु--मफ़ाईलुन // मफ़ऊलु--मफ़ाईलुन
221-----------1222 //221------------1222 
बह्र-ए-हज़ज मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ ,मक्फ़ूफ़ मुख़्ख़निक सालिम अल आख़िर 

एक ग़ज़ल - 08[18]

ईमान कहाँ देखा ,’सत्यवान”कहाँ देखा !
देखे तो नगर कितने ,इंसान कहाँ देखा !

अबतक जो मिले मुझसे,थे दर्द भरे चेहरे
उपमेय बहुत देखे ,उपमान कहाँ देखा !

गमलों की उपज वाले, माटी से कटे थे लोग
थे नाम बहुत ऊँचे,पहचान कहाँ देखा !

हँसने की प्रतीक्षा में, क्या क्या न सहे मैने
अभिशाप बहुत ढोए, वरदान कहाँ देखा !

चेहरे पे खिंची रेखा ,पत्थर की तरह चेहरे ,
आँखों में व्यथा ठहरी,मुस्कान कहाँ देखा !

अमृत की प्रतिष्ठा में ,आचरण बहुत देखे
शंकर की तरह लेकिन, विषपान कहाँ देखा !

दरया का समन्दर तक,जीवन का सफ़र’आनन’
पत्थर से  भरी  राहें  , आसान कहाँ देखा !

-आनन्द.पाठक-

[सं 26-07-20]

रविवार, 13 दिसंबर 2009

गीत 21 : मैं प्यार माँगता हूँ .......

एक गीत : मैं प्यार माँगता हूँ......

मैं प्यार माँगता हूँ ,अधिकार माँगता हूँ !

जीवन के इस सफ़र में
श्वासों के इस भँवर में

टूटे हुए सपन का श्रृंगार माँगता हूँ
मैं प्यार माँगता हूँ........

आदर्श के सहारे
लूटी गईं बहारें

उजड़ी हुई गली का गुलजार माँगता हूँ
मैं प्यार माँगता हूँ........

दे दो कदम सहारा
क्यों कर लिया किनारा

अनजान ग़लतियों को स्वीकार मानता हूँ
मैं प्यार माँगता हूँ........

यादों को साथ लेकर
स्वप्निल बरात लेकर

मधुयामिनी मिलन का उपहार माँगता हूँ
मैं प्यार माँगता हूँ........

गुरुवार, 3 दिसंबर 2009

गीत 20 [09]:श्वेत-पत्र पर खून के छींटे...

[ ६ दिसम्बर,किसी भी वर्ष का एक सामान्य दिन,भारतीय राजनीति का का एक खास दिन,६-दिसम्बर -१९९२ ,बाबरी मस्जिद ढहाई गई, दो दिलों के बीच नफ़रत की दीवार उठाई गई.इस दिन को कोई शौर्य दिवस के रूप में मनायेगा,कोई पुरुषार्थ दिवस के रूप में ,कोई धिक्कार दिवस के रूप में मनाएगा,कोई इसे इन्सानियत शर्मसार दिवस के रूप में मनायेगा.लाश गिन-गिन संसद की सीढ़िया चढ़ते लोग..लिब्राहम रिपोर्ट में इल्जाम सब पर ,मुजरिम कोई नही......
जले पर नमक यह कि इस घटना पर एक श्वेत-पत्र लाने की बात हुई थी....शायद .उन्हे मालूम नहीं....इतिहास के काले पन्नों से श्वेत-पत्र नहीं लिखा जाता..
अयोध्या बाबरी मस्जिद प्रकरण पर हुए दंगे पर उत्पन्न एक सहज आक्रोश.....उस समय लिखी गई एक सहज कविता....]

एक कविता  20[09] :श्वेत-पत्र पर खून की छींटे....

श्वेतपत्र पर खून की छींटे मिट न सकेंगे
चाहे जितना तथ्य जुटा लो टिक न सकेंगे

सरयू की लहरें साक्षी हैं रघुकुल रीति जहाँ की
प्राण जाए पर वचन न जाए ऐसी बात कहाँ थी
एक ईंट क्या ढही! हजारों ढही आस्था मन की
पूछ रहे हैं सिकता कण,रक्त-रंजित धार किधर की??

गिध्दों के घर शान्ति कबूतर टिक न सकेंगे
श्वेत-पत्र पर खून के .....

मन्दिर-मस्जिद नहीं बने हैं ईंटे-पत्थर-गारों से
ईश्वर कभी नहीं बँट सकता खंजर और कटारों से
मन की श्रध्दा अगर प्रबल हो,पत्थर भी शिवालय है
धर्म कभी नहीं सिंच सकता नर-रक्त की धारों से

लंगड़ी टांगे बहुत दूर तक चल न सकेंगे
श्वेत-पत्र पर खून के.....

जली बस्तियाँ ,टूटे चूल्हे ,जलती लाश तबाही देखा
निर्दोष बिलखते बच्चों को अब बोलो कौन गवाही देगा?
शब्दों के आश्वासन से तो सूनी माँग नहीं भर सकती
राखी वाले हाथ कटे हैं बोलो कौन सफ़ाई देगा ??

आरोपें और प्रत्यारोपें बिक न सकेंगे
श्वेत-पत्र पर खून के....

श्वेत-पत्र में तथ्य नहीं ,इतिहास नहीं, हिसाब चाहिए
किस-किस ने मिलकर किया हमे विश्वासघात जवाब चाहिए
हम गूँगी पीढ़ी नहीं कि असमय काल-पात्र में दफ़न हो गये
छिनी अस्मिता रोटी जिनकी ,उनको भी इंसाफ़ चाहिए

बहुत पी चुके और हलाहल पी न सकेंगे
श्वेत-पत्र पर खून के छींटे....

-आनन्द.पाठक