मफ़ऊलु--मफ़ाईलुन // मफ़ऊलु--मफ़ाईलुन
221-----------1222 //221------------1222
बह्र-ए-हज़ज मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ ,मक्फ़ूफ़ मुख़्ख़निक सालिम अल आख़िर
एक ग़ज़ल - 08[18 A]
ईमान कहाँ देखा ,’सत्यवान”कहाँ देखा !
देखे तो नगर कितने ,इंसान कहाँ देखा !
अबतक जो मिले मुझसे,थे दर्द भरे चेहरे
उपमेय बहुत देखे ,उपमान कहाँ देखा !
गमलों की उपज वाले, माटी से कटे थे लोग
थे नाम बहुत ऊँचे,पहचान कहाँ देखा !
हँसने की प्रतीक्षा में, क्या क्या न सहे मैने
अभिशाप बहुत ढोए, वरदान कहाँ देखा !
चेहरे पे खिंची रेखा ,पत्थर की तरह चेहरे ,
आँखों में व्यथा ठहरी,मुस्कान कहाँ देखा !
अमृत की प्रतिष्ठा में ,आचरण बहुत देखे
शंकर की तरह लेकिन, विषपान कहाँ देखा !
दरया का समन्दर तक,जीवन का सफ़र’आनन’
पत्थर से भरी राहें , आसान कहाँ देखा !
-आनन्द.पाठक-
[सं 26-07-20]
221-----------1222 //221------------1222
बह्र-ए-हज़ज मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ ,मक्फ़ूफ़ मुख़्ख़निक सालिम अल आख़िर
एक ग़ज़ल - 08[18 A]
ईमान कहाँ देखा ,’सत्यवान”कहाँ देखा !
देखे तो नगर कितने ,इंसान कहाँ देखा !
अबतक जो मिले मुझसे,थे दर्द भरे चेहरे
उपमेय बहुत देखे ,उपमान कहाँ देखा !
गमलों की उपज वाले, माटी से कटे थे लोग
थे नाम बहुत ऊँचे,पहचान कहाँ देखा !
हँसने की प्रतीक्षा में, क्या क्या न सहे मैने
अभिशाप बहुत ढोए, वरदान कहाँ देखा !
चेहरे पे खिंची रेखा ,पत्थर की तरह चेहरे ,
आँखों में व्यथा ठहरी,मुस्कान कहाँ देखा !
अमृत की प्रतिष्ठा में ,आचरण बहुत देखे
शंकर की तरह लेकिन, विषपान कहाँ देखा !
दरया का समन्दर तक,जीवन का सफ़र’आनन’
पत्थर से भरी राहें , आसान कहाँ देखा !
-आनन्द.पाठक-
[सं 26-07-20]
3 टिप्पणियां:
अमृत की प्रतिष्ठा में आचरण बहुत देखे
शंकर की तरह लेकिन विषपान कहाँ देखा !
behatareen abhivyakti.
आ० योगेश जी
सराहना के लिए धन्यवाद
सादर
-आनन्द.पाठक
बहुत सुन्दर रचना है।बधाई स्वीकारें।
अमृत की प्रतिष्ठा में आचरण बहुत देखे
शंकर की तरह लेकिन विषपान कहाँ देखा !
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