शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2024
अनुभूति 162/49
मंगलवार, 22 अक्टूबर 2024
अनुभूति 161/48
अनुभूति 161/48
641
सुन कर मेरी प्रेम-कहानी
साथी ! तुमको क्या करना है?
कर्ज किसी का मेरे सर पर
आजीवन जिसको भरना है।
642
कसमे वादे प्यार वफ़ा सब
जब तुमने ही भुला दिया है
मैने भी अपनी चाहत को
थपकी दे दे सुला दिया है ।
643
जो भी करना खुल कर करना
द्वंद पाल कर क्या करना है
दुनिया की तो नज़रें टेढ़ी
दुनिया से अब क्या करना है ।
644
और तुम्हे क्या समझाऊँ मैं
झूठ तुम्हे सब लगता है तो
चोट लगी क्या दिखलाऊँ मैं।
रविवार, 20 अक्टूबर 2024
अनुभूति 160/47
अनुभूति 160/47
637
तर्क नहीं जब, नहीं दलीलें
शोर शराबा ही शामिल हो
क्यों उलझे हो उसी बहस में
अन्तहीन जो लाहासिल हो ।
638
तुम हो ख़ुद में एक पहेली
आजीवन हल कर ना पाया
पर्दे के अन्दर पर्दा है --
राज़ यही कुछ समझ न आया।
639
सूरज कब श्रीहीन हुआ है
जन-मानस को जगा दिया है
बादल को यह भरम हुआ है
सूरज उसने छुपा दिया है ।
640
वही अनर्गल बातें फिर से
वही तमाशा फिर दुहराना
जिन बातों का अर्थ न कोई
उन बातों में फिर क्यों आना ।
-आनद.पाठक-
लाहासिल = जिसका कोई हासिल न हो, अनिर्णित
गुरुवार, 17 अक्टूबर 2024
अनुभूति 159/46
अनुभूति159/46
633
नहीं समझना है जब तुमको
कौन तुम्हें फिर क्या समझाए
इतनी जिद भी ठीक नहीं है
घड़ी मिलन की बीती जाए ।
634
सबके अपने जीवन क्रम है
सबकी अपनी मजबूरी है
मन तो वैसे साथ साथ है
तन से तन की ही दूरी है ।
635
समझौते करने पड़ते हैं
जीवन की गति से, प्रवाह में
कभी ठहरना, गिर गिर जाना
मंज़िल पाने की निबाह में
636
एक तुम्ही तो नहीं अकेली
ग़म का बोझ लिए चलती हो
हर कोई ग़मजदा यहाँ है
ऊपर से दुनिया छलती है ।
-आनन्द.पाठक-
सोमवार, 14 अक्टूबर 2024
अनुभूति 158/45
अनुभूति 158/45
629
भला बुरा या जैसा भी हूँ
जो बाहर से, सो अन्दर से
शायद और निखर जाऊँ मै
पारस परस तुम्हारे कर से ।
630
विरह वेदना अगर न होती
तड़प नहीं जो होती इसमे
पता कहाँ फिर चलता कैसे
प्रेम भावना कितना किसमे।
631
हम दोनों की राह अलग अब
लेकिन मंज़िल एक हमारी
प्रेम अगन ना बुझने पाए
चाहे जो हो विपदा भारी ।
632
दोषारोपण क्या करना अब
किसने जोड़ा, किसने छोड़ा
टूट गई जब प्रेम की डोरी
व्यर्थ बहस क्या किसने तोड़ा
-आनन्द पाठक-
अनुभूति157/44
625
मुझे मतलबी समझा तुमने
सोच तुम्हारी, मैं क्या बोलूँ
खोल चुका दिल पूरा अपना
और बताओ कितना खोलूँ
626
कमी सभी में कुछ ना कुछ तो
कौन यहाँ सम्पूर्ण स्वयं में ।
सत्य मान कर जीते रहना
आजीवन बस एक भरम में ।
627
जो होना है सो होगा ही
व्यर्थ बहस है व्यर्थ सोचना
पाप-पुण्य की बात अलग है
कर्मों का फ़ल यहीं भोगना ।
628
ग़लत सदा ही समझा तुमने
देव नहीं में , नहीं फ़रिश्ता
जैसी तुम हो, वैसा मैं भी
दिल से दिल का केवल रिश्ता
-आनन्द.पाठक--
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अनुभूति 156/43
रविवार, 13 अक्टूबर 2024
कोना-01
[ इस कोने में अपना कोई शे’र/कविता/गीत/मुक्तक नहीं अपितु अन्य तमाम चुनिंदा शायरों/कवियों के चुनिंदा अश’आर/ क़ता’अ/-मुक्तक./ गीतांश-आदि का मज़्मुआ [संकलन] है जो मुझे बेहद पसंद है]-
-हर कोने में 8 अश’आर
कोना 01
1
अब इतनी भी ज़्यादा सफ़ाई न दे । - बशीर बद्र
वरना सफ़र हयात का काफी तवील था -अब्दुल हमीद ’अदम’
अनुभूति 155/42
अनुभूतिया 155/42
617
सात जनम की बातें करते
सुनते रहते वचन धरम में
एक जनम ही निभ जाए तो
बहुत बड़ी है बात स्वयं में ।
618
बंद अगर आँखें कर लोगी
फिर कैसे दुनिया देखोगी
कौन तुम्हारा, कौन पराया
लोगों को कैसे समझोगी ।
619
सरल नही है सच पर टिकना
पग पग पर है फिसलन काई
मिल कर टाँग खीचने वाले
झूठों के जो है अनुयायी ।
620
यह दुनिया है, बिना सुने ही
ठहरा देगी तुमको मजरिम
लाख सफाई देते रहना
वही फैसला उसका अंतिम
-आनन्द पाठक-
शनिवार, 12 अक्टूबर 2024
अनुभूतियाँ 154/41
गुरुवार, 3 अक्टूबर 2024
ग़ज़ल 427[ 01G] ; नशा दौलत का है उसको--
ग़ज़ल 427 [01G]
1222---1222---1222---1222
मुफ़ाईलुन--मुफ़ाईलुन--मुफ़ाईलुन--मुफ़ाईलुन
बह्र-ए-हज़ज मुसम्मन सालिम
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नशा दौलत का है उसको, अभी ना होश आएगा
खुलेगी आँख तब उसकी, वो जब सब कुछ गँवाएगा।
बहुत से लोग ऐसे हैं, ख़ुदा ख़ुद को समझते हैं
सही जब वक़्त आएगा, समय सब को सिखाएगा।
बख़ूबी जानता है वह कि उसकी हैसियत क्या है
बड़ा खुद को बताने में तुम्हें कमतर बताएगा ।
वो साज़िश ही रचा करता, हवाओं से है याराना
अगर मौक़ा मिला उसको, चिराग़ों को बुझाएगा
किताबों में लिखीं बाते, सुनाता हक़ परस्ती की
अमल में अब तलक तो वह, न लाया है, न लाएगा
हवा में भाँजता रहता है तलवारें दिखाने को
जहां कुर्सी दिखी उसको, चरण में लोट जाएगा ।
शराफत की भली बातें, कहाँ सुनता कोई "आनन"
सभी अपनी अना में है, किसे तू क्या सुनाएगा ।
-आनन्द.पाठक-