[ इस कोने में अपना कोई शे’र/कविता/गीत/मुक्तक नहीं अपितु अन्य तमाम चुनिंदा शायरों/कवियों के चुनिंदा अश’आर/ क़ता’अ/-मुक्तक./ गीतांश-आदि का मज़्मुआ [संकलन] है जो मुझे बेहद पसंद है]-
-हर कोने में 8 अश’आर
कोना 01
1
ख़तावार समझेगी दुनिया तुझे
अब इतनी भी ज़्यादा सफ़ाई न दे । - बशीर बद्र
अब इतनी भी ज़्यादा सफ़ाई न दे । - बशीर बद्र
2
अदब के नाम पे महफ़िल में चरबी बेचने वालों
अभी वो लोग ज़िंदा हैं जो घी पहचान लेते हैं । - क़यूम नाशाद
3
ज़फ़ा के ज़िक्र पे तुम क्यों सँभल के बैठ गए
तुम्हारी बात नहीं बात है ज़माने की । - मज़रूह सुल्तानपुरी
4
सिर्फ़ तुकबंदिया काम देगी नहीं
शायरी कीजिए शायरी की तरह । - शरद तैलंग
5
जिसके आँगन में अमीरी का शजर लगता है
उसका हर ऎब ज़माने को हुनर लगता है । - -अंजुम रहबर
6
ज़माना बड़े शौक़ से सुन रहा था
हमी सो गए दास्ताँ कहते कहते - साक़िब लखनवी
7
ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया
झूठी कसम से आप का ईमान तो गया । -दाग़ देहलवी
8
मैं मयकदे की राह से हो कर गुज़र गया
वरना सफ़र हयात का काफी तवील था -अब्दुल हमीद ’अदम’
वरना सफ़र हयात का काफी तवील था -अब्दुल हमीद ’अदम’
-आनन्द.पाठक--[संकलन कर्ता]
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