रविवार, 13 अक्टूबर 2024

कोना-01

[ इस कोने में अपना कोई शे’र/कविता/गीत/मुक्तक  नहीं  अपितु अन्य तमाम चुनिंदा शायरों/कवियों  के चुनिंदा अश’आर/ क़ता’अ/-मुक्तक./ गीतांश-आदि का मज़्मुआ [संकलन] है जो मुझे बेहद पसंद है]-

-हर कोने में 8  अश’आर

कोना 01

1

ख़तावार समझेगी दुनिया तुझे
अब इतनी भी ज़्यादा सफ़ाई न दे ।                                - बशीर बद्र

2
अदब के नाम पे महफ़िल में चरबी बेचने वालों
अभी वो लोग ज़िंदा हैं जो घी पहचान लेते हैं ।                  -  क़यूम नाशाद

3
ज़फ़ा के ज़िक्र पे तुम क्यों सँभल के बैठ गए
तुम्हारी बात नहीं बात है ज़माने की ।                            - मज़रूह सुल्तानपुरी

4
सिर्फ़ तुकबंदिया काम देगी नहीं
शायरी कीजिए शायरी की तरह ।                              - शरद तैलंग

5
जिसके आँगन में अमीरी का शजर लगता है
उसका हर ऎब ज़माने को हुनर लगता  है ।    -             -अंजुम रहबर

6
ज़माना बड़े शौक़ से सुन रहा था
हमी सो गए दास्ताँ कहते कहते                                   - साक़िब लखनवी

7
ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया
झूठी कसम से आप का ईमान तो गया ।                        -दाग़  देहलवी

8
मैं मयकदे की राह से हो कर गुज़र गया
वरना सफ़र हयात का काफी तवील था                          -अब्दुल हमीद ’अदम’


-आनन्द.पाठक--[संकलन कर्ता]




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