अनुभूति 160/47
637
तर्क नहीं जब, नहीं दलाइल
शोर शराबा ही शामिल हो
क्यों उलझे हो उसी बहस में
अन्तहीन जो लाहासिल हो ।
638
तुम ख़ुद में हो एक पहेली
आजीवन हल कर ना पाया
पर्दे के अन्दर पर्दा है --
राज़ यही कुछ समझ न आया।
639
सूरज कब श्रीहीन हुआ है
जन-मानस को जगा दिया है
बादल को यह भरम हुआ है
सूरज उसने छुपा दिया है ।
640
वही अनर्गल बातें फिर से
वही तमाशा फिर दुहराना
जिन बातों का अर्थ न कोई
उन बातों में फिर क्यों आना ।
-आनद.पाठक-
दलाइल = दलीलें [ दलील का बहुवचन]
लाहासिल = जिसका कोई हासिल न हो, अनिर्णित
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