अनुभूतिया 155/42
617
सात जनम की बातें करते
सुनते रहते वचन धरम में
एक जनम ही निभ जाए तो
बहुत बड़ी है बात स्वयं में ।
618
बंद अगर आँखें कर लोगी
फिर कैसे दुनिया देखोगी
कौन तुम्हारा, कौन पराया
लोगों को कैसे समझोगी ।
619
सरल नही है सच पर टिकना
पग पग पर है फिसलन काई
मिल कर टाँग खीचने वाले
झूठों के जो है अनुयायी ।
620
यह दुनिया है, बिना सुने ही
ठहरा देगी तुमको मजरिम
लाख सफाई देते रहना
वही फैसला उसका अंतिम
-आनन्द पाठक-
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