सोमवार, 14 अक्तूबर 2024

अनुभूति 156/43

अनुभूतियाँ 156/43

 621
बंद करो यह प्रवचन अपना
इधर उधर की बात सुना कर
ख़ुद को भगवन बता रहे हो
भोली जनता को भरमा कर

622
कर्म तुम्हारा ख़ुद बोलेगा
चाहे जितनी हवा बाँध लो
वक़्त करेगा सही फ़ैसला
जिसको जितना जहाँ साध लो।

623
जीवन के अनुभूति क्रम में
परत, परत दर परत व्यथाएँ
आँखों में आँसू बन छलकी
बूँद बूँद में कई कथाएँ ।

624
व्यर्थ तुम्हारी अपनी जिद थी
शर्त नही होती उलफ़त में
कितनी भोली नादाँ हो तुम
इश्क़ नही होता ग़फ़लत में ।

-आनन्द.पाठक-

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