गीत 91: चंदन वन की शीतल मंद सुगंध हवाएँ
चंदन वन की शीतल मंद सुगन्ध हवाएँ
वातायन तक आती हैं तो आने दो ।
उपवन उपवन फूल खिलेंगे हर घर में
सत्कर्मों सदभावों से जब सीचोंगे ।
फिर बसंत हरियाली लेकर आएगा
जब नफ़रत के बीज नहीं तुम बोओगे।
नील गगन में मुक्त कंठ से कोयल कोई
नील गगन में मुक्त कंठ से कोयल कोई
गीत प्रेम का गाती है तो गाने दो ।
हर मन में इक प्यास अधूरी रहती है
जीने को मिल जाता एक सहारा है ।
जीने को मिल जाता एक सहारा है ।
आजीवन बेचैन रहा करता है मन
ढूँढा करता अपना एक किनारा है ।
मत रोको अब इन कलकल बहती नदियों को
सागर से मिलने को जाती, जाने दो ।
आज नही तो कल मौसम बदलेगा ही
सूरज की किरणे प्राची से निकलेंगी
छँटना है दुख का अँधियारा, सत्त्य यही
नई हवा से नई फ़िज़ाएँ बदलेंगी ।
आसमान को नापेंगे ज़ाँबाज परिंदे
उड़ने को तैयार, इन्हें उड़ जाने दो ।
उड़ने को तैयार, इन्हें उड़ जाने दो ।
-आनन्द.पाठक-
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें