शुक्रवार, 30 मई 2025

गीत 91 : चंदन वन की शीतल मंद सुगंध हवाएँ

 गीत 91: चंदन वन की शीतल मंद सुगंध हवाएँ


चंदन वन की शीतल मंद सुगन्ध हवाएँ
वातायन तक आती हैं तो आने दो ।

        उपवन उपवन फूल खिलेंगे हर घर में
        सत्कर्मों सदभावों से जब सीचोंगे ।
        फिर बसंत हरियाली लेकर आएगा
        जब नफ़रत के बीज नहीं तुम बोओगे।

नील गगन में मुक्त कंठ से कोयल कोई
गीत प्रेम का गाती है तो गाने दो ।

        हर मन में इक प्यास अधूरी रहती है
        जीने को मिल जाता एक सहारा है ।
        आजीवन बेचैन रहा करता है मन 
        ढूँढा करता अपना एक किनारा है ।

मत रोको अब इन कलकल बहती नदियों को
सागर से मिलने को जाती, जाने दो ।

        आज नही तो कल मौसम बदलेगा ही
        सूरज की किरणे प्राची से  निकलेंगी 
        छँटना है दुख का अँधियारा, सत्त्य यही
        नई हवा से नई फ़िज़ाएँ बदलेंगी ।


आसमान को नापेंगे ज़ाँबाज परिंदे
उड़ने को तैयार, इन्हें उड़ जाने दो ।

-आनन्द.पाठक-


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