गीत 71: आज दीपावली ज्योति का पर्व है--
 एक गीत : दीपावली पर
आज दीपावली, ज्योति का पर्व है
दीप की मालिका हम सजाते चलें
	आज मिल कर सजाएँ नई अल्पना
	झूमने नाचने का करें सिलसिला
	पर्व ख़ुशियों का है और उल्लास का
	भूल जाएँ कोई हो जो शिकवा,गिला
मन बँटा हो भले, रोशनी कब बँटी !
प्यार का दीप दिल में जलाते चलें ।
	धर्म के नाम पर व्यर्थ उन्माद में
	चेतना मर गई, भावना मर गई
	मन के अन्दर की सब खिड़कियाँ बन्द है
	उनके कमरे में कितनी घुटन भर गई
सोच नफ़रत भरी है, जहर भर गया
इन अँधेरों को पहले मिटाते चलें ।
	झोंपड़ी का अँधेरा करें दूर हम
	झुग्गियों बस्तियों में जला कर दिए
	एक दिन चाँदनी भी उतर आएगी
	आदमी जो जिए दूसरों के लिए
अब अँधेरों में कोई न भटके कहीं
सत्य की राह क्या है ? दिखाते चलें
	आज दुनिया खड़ी ले के परमाणु बम्ब
	ख़ौफ़ फैला फ़िज़ां में जिधर देखिए
	लोग हाथों में पत्थर लिए हैं खड़े
	कब तलक बच रहे अपना सर देखिए
विश्व में हो अमन, चैन हो, प्रेम हो
बुद्ध के सीख- संदेश गाते चलें ।
आज दीपावली,ज्योति का पर्व है। दीप की मालिका हम सजाते चलें। 
-आनन्द.पाठक-
 
 
 
          
      
 
  
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें