शनिवार, 30 अक्तूबर 2021

ग़ज़ल 199 : कहीं तुम मेरा आइना तो नहीं हो ?

 ग़ज़ल 199


122---122---122---122


कहीं तुम मेरा आइना तो नहीं हो ?

मेरे हक़ की हर्फ़-ए-दुआ तो नहीं हो ?


ये माना तुम्हारे मुक़ाबिल न कोई

मगर इसका मतलब ख़ुदा तो नहीं हो 


ये लम्बी ख़मोशी डराती है मुझको

कहीं बेसबब तुम ख़फ़ा तो नहीं हो


हवाओं में ख़ुशबू अभी तक तुम्हारी

कहीं तुम ख़ुद अपना पता तो नहीं हो ?


ख़ला से मेरी लौट आती सदाएँ

कहीं तुम मेरे हमनवा तो नहीं हो ?


बहुत लोग आए तुम्हारे ही जैसे

फ़ना हो गए, तुम जुदा तो नहीं हो


किसी दिन तुम्हें ढूँढ लूँगा मैं ’आनन’

मेरे दिल मे हो, लापता तो नहीं हो


-आनन्द.पाठक-



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