कुछ अनुभूतियाँ
1
रात रात भर जग कर चन्दा
ढूँढ रहा है किसे गगन में ?
थक कर बेबस सो जाता है
दर्द दबा कर अपने मन में |
2
बीती रातों की सब बातें
मुझको कब सोने देती हैं ?
क़स्में तेरी सर पर मेरे
मुझको कब रोने देती हैं ?
3
कौन सुनेगा दर्द हमारा
वो तो गई, जिसको सुनना था,
आने वाले कल की ख़ातिर
प्रेम के रंग से मन रँगना था।
4
सपनों के ताने-बानों से
बुनी चदरिया रही अधूरी
वक़्त उड़ा कर कहाँ ले गया
अब तो बस जीना मजबूरी
-आनन्द.पाठक-
6 टिप्पणियां:
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २२ अक्टूबर २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत ही सुंदर रचना
बीती रातों की सब बातें
मुझको कब सोने देती हैं ?
क़स्में तेरी सर पर मेरे
मुझको कब रोने देती हैं ?
बहुत अद्भुत पंक्तियाँ
सपनों के ताने-बानों से
बुनी चदरिया रही अधूरी
वक़्त उड़ा कर कहाँ ले गया
अब तो बस जीना मजबूरी
... हृदयस्पर्शी सृजन ।
कौन सुनेगा दर्द हमारा
वो तो गई, जिसको सुनना था,
आने वाले कल की ख़ातिर
प्रेम के रंग से मन रँगना था।
बहुत गहन अनुभूतियां 👌👌👌👌🙏🙏🙏
कौन सुनेगा दर्द हमारा
वो तो गई, जिसको सुनना था,
आन वाले कल की ख़ातिर
प्रेम के रंग से मन रँगना था।👌👌👌 सुकोमल एहसास का सुन्दर शब्दांकन!
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