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ग़ज़ल 198
तेरे इश्क़ में इब्तिदा से हूँ राहिल
न तू बेख़बर है, न मैं हीं हूँ ग़ाफ़िल
ये उल्फ़त की राहें न होती हैं आसाँ
अभी और आएँगे मुश्किल मराहिल
मुहब्ब्त के दर्या में कागज की कश्ती
ये दर्या वो दर्या है जिसका न साहिल
जो पूछा कि होतीं क्या उलफ़त की रस्में
दिया रख गई वो हवा के मुक़ाबिल
इबादत में मेरे कहीं कुछ कमी थी
वगरना वो क्या थे कि होते न हासिल
अलग बात है वो न आए उतर कर
दुआओं में मेरे रहे वो भी शामिल
कभी दिल की बातें भी ’आनन’ सुना कर
यही तेरा रहबर, यही तेरा आदिल ।
-आनन्द. पाठक-
राहिल = यात्री
2 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 18 अक्टूबर 2021 को साझा की गयी है....
पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
वाह
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