कविता 11
----2-अक्टूबर- गाँधी जयन्ती----
अँधियारों में सूरज एक खिलानेवाला
जन गण के तन-मन में ज्योति जगानेवाला
गाँधी वह जो क्षमा दया करूणा की मूरत
फूलों से चटटानों को चटकाने वाला
क़लम कहाँ तक लिख पाए गाँधी की बातें
इधर अकेला दीप, उधर थी काली रातें
तोड़ दिया जंजीरों को जो यष्टि देह से
बाँध लिया था मुठ्ठी में जो झंझावातें
आज़ादी की अलख जगाते थे, गाँधी जी
’वैष्णव जण” की पीर सुनाते थे, गाँधी जी
सत्य अहिंसा सत्याग्रह से, अनुशासन से
सदाचार से विश्व झुकाते थे, गाँधी जी
गाँधी केवल नाम नहीं है, इक दर्शन है
लाठी, धोती, चरखा जिनका आकर्षन है
सत्य-अहिंसा के पथ पर जो चले निरन्तर
गाँधी जी को मेरा सौ-सौ बार नमन है
-आनन्द.पाठक-
1 टिप्पणी:
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