गुरुवार, 21 अक्टूबर 2021

अनुभूतियाँ : क़िस्त 013

 
 अनुभूतियाँ : क़िस्त 013 ओके
 
49
रात रात भर जग कर चन्दा
ढूँढ रहा है किसे गगन में ?
थक कर बेबस सो जाता है
दर्द दबा कर अपने मन में |
 
50
बीती रातों की सब बातें
मुझको कब सोने देती हैं ?
क़स्में तेरी सर पर मेरे
मुझको कब रोने देती हैं ?
 
51
कौन सुनेगा दर्द हमारा
वो तो गई, जिसे सुनना था,
आने वाले कल की ख़ातिर
प्रेम के रंग से मन रँगना था।
 
52
सपनों के ताने-बानों से
बुनी चदरिया रही अधूरी
तार-तार कर दिया समय ने
अब तो बस जीना मजबूरी   
 
-आनन्द.पाठक-
 

6 टिप्‍पणियां:

Sweta sinha ने कहा…

जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २२ अक्टूबर २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

Manisha Goswami ने कहा…

बहुत ही सुंदर रचना

हरीश कुमार ने कहा…

बीती रातों की सब बातें

मुझको कब सोने देती हैं ?

क़स्में तेरी सर पर मेरे

मुझको कब रोने देती हैं ?
बहुत अद्भुत पंक्तियाँ

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

सपनों के ताने-बानों से

बुनी चदरिया रही अधूरी

वक़्त उड़ा कर कहाँ ले गया

अब तो बस जीना मजबूरी

... हृदयस्पर्शी सृजन ।

रेणु ने कहा…

कौन सुनेगा दर्द हमारा

वो तो गई, जिसको सुनना था,

आने वाले कल की ख़ातिर

प्रेम के रंग से मन रँगना था।
बहुत गहन अनुभूतियां 👌👌👌👌🙏🙏🙏

रेणु ने कहा…

कौन सुनेगा दर्द हमारा
वो तो गई, जिसको सुनना था,
आन वाले कल की ख़ातिर
प्रेम के रंग से मन रँगना था।👌👌👌 सुकोमल एहसास का सुन्दर शब्दांकन!