सोमवार, 30 सितंबर 2024

अनुभूतियाँ 153/40

अनुभूति 153/40


609

पहले वाली बात कहाँ अब

मौसम बदला तुम भी बदली

वो भी दिन क्या दिन थे अपने

मैं था ’पगला" तुम थी ’पगली

 

610

जिन बातों से चोट लगी हो

मन में उनको, फिर लाना क्यों

जख्म अगर थक कर सोए हो

फिर उनको व्यर्थ जगाना क्यों

 

611

जब से दूर गए हो प्रियतम

साथ गईं मेरी साँसे भी

देख रही हैं सूनी राहें

और प्रतीक्षारत आँखे भी


612

समझाने का मतलब क्या फिर

बात नहीं जब तुमने मानी

क्या कहता मैं जब तुमने ही

राह अलग चलने की ठानी

 

-आनन्द.पाठक

 


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