ग़ज़ल 71-फ़
2122---1212---112
हाल इतना तेरा बुरा तो नहीं ।
वक़्त तेरा अभी गया तो नहीं ।
सामने हैं अभी खुली राहें ,
हौसला है,अभी मरा तो नहीं ।
एक दीपक तमाम उम्र जला
आँधियों से कभी डरा तो नहीं ।
जानता हूँ तू बेवफ़ा न सही
चाहे जो है तू बावफ़ा तो नहीं ।
इश्क अंजाम तक भले न गया
इश्क करना कोई ख़ता तो नहीं ।
आँख तेरी है क्यूँ छलक आई,
ज़िक्र मेरा कहीं हुआ तो नहीं ?
बात यह भी तो है सही ’आनन’
ज़िन्दगी क़ैद की सज़ा तो नहीं ।
-आनन्द.पाठक-
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