ग़ज़ल 426[75 फ़]
21--121--121--122 =16
झूठे ख़्वाब दिखाते क्यों हो
सच को तुम झुठलाते क्यों हो
कुर्सी क्या है आनी-जानी
तुम दस्तार गिराते क्यों हो
तर्क नहीं जब पास तुम्हारे
इतना फिर चिल्लाते क्यों हो।
गुलशन तेरा मेरा सबका
फिर दीवार उठाते क्यों हो ।
बाँध कफ़न हर बार निकलते
पीठ दिखा कर आते क्यों हो ।
जब जब लाज़िम था टकराना
हाथ खड़े कर जाते क्यों हो ।
पाक अगर है दिल तो ’आनन’
दरपन से घबराते क्यों हो ।
-आनन्द.पाठक -
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