सोमवार, 16 सितंबर 2024

अनुभूतियां 149/36

अनुभूतियाँ 149/36


593

बहुत दिनों के बाद मिली हो

आओ,  बैठॊ पास हमारे -

यह मत पूछो कैसे काटे

विरहा में, दिन के अँधियारे ।

 

594

मन के अन्दर ज्योति प्रेम की

राह दिखाती रही उम्र भर

जिसे छुपाए रख्खा मैने

पीड़ा गाती रही उम्र भर

 

595

कब तक मौन रहोगी यूँ ही

कुछ तो अन्तर्मन की बोलो

अन्दर अन्दर क्यों घुलती हो

कुछ तो मन की गाँठें खोलो

 

596

 हर बार छला दिल ने मुझको

हर बार उसी की सुनता हूँ

क्या होता हैं सपनों का सच

मालूम,  मगर मैं बुनता हूँ


 


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