अनुभूतियाँ 149/36
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बहुत दिनों के बाद मिली हो
आओ, बैठॊ पास हमारे -
यह मत पूछो कैसे काटे
विरहा में, दिन के अँधियारे ।
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मन के अन्दर ज्योति प्रेम की
राह दिखाती रही उम्र भर
जिसे छुपाए रख्खा मैने
पीड़ा गाती रही उम्र भर
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कब तक मौन रहोगी यूँ ही
कुछ तो अन्तर्मन की बोलो
अन्दर अन्दर क्यों घुलती हो
कुछ तो मन की गाँठें खोलो
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हर बार छला दिल ने मुझको
हर बार उसी की सुनता हूँ
क्या होता हैं सपनों का सच
मालूम, मगर मैं बुनता हूँ
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