मंगलवार, 12 दिसंबर 2017

फ़र्द 01

[ एक समन्दर , मेरे अन्दर ] से
           
     2
11212---11212---11212---11212
 वो चिराग़ लेके चला तो है ,मगर आँधियों का ख़ौफ़ भी
 मैं सलामती की दुआ करूँ ,उसे हासिल-ए-महताब हो     
6
1222---1222---1222---1222
 अजब क्या चीज़ है ये नीद जो आंखों में बसती है
 जब आनी है तो आती है , नहीं आनी ,नही आती
 11
1222---1222---1222---1222
 तुम्हारा रास्ता तुमको मुबारक हज़रत-ए-नासेह
 अरे ! मैं रिन्द हूँ पीर-ए-मुगां है ढूँढता  मुझको
  21
ये शराफ़त थी हमारी ,आप की सुन गालियां
चाहते हम भी सुनाते ,बेज़ुबां हम भी न थे
  24
11212---11212---11212---11212
मैं दरख़्त हूँ ,वो लगा गया ,मैं बड़ा हुआ ,वो चला गया
वो बसीर था जो भी ख़्वाब थे मेरी शाख़ शाख़ में जज़्ब है
                    
(एक समंदर मेरे अंदर ) --प्रकाशित
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2 टिप्‍पणियां:

'एकलव्य' ने कहा…

बहुत ही सुन्दर व कोमल भाव रचना का

'एकलव्य' ने कहा…

आपको सूचित करते हुए बड़े हर्ष का अनुभव हो रहा है कि ''लोकतंत्र'' संवाद ब्लॉग 'मंगलवार' ९ जनवरी २०१८ को ब्लॉग जगत के श्रेष्ठ लेखकों की पुरानी रचनाओं के लिंकों का संकलन प्रस्तुत करने जा रहा है। इसका उद्देश्य पूर्णतः निस्वार्थ व नये रचनाकारों का परिचय पुराने रचनाकारों से करवाना ताकि भावी रचनाकारों का मार्गदर्शन हो सके। इस उद्देश्य में आपके सफल योगदान की कामना करता हूँ। इस प्रकार के आयोजन की यह प्रथम कड़ी है ,यह प्रयास आगे भी जारी रहेगा। आप सभी सादर आमंत्रित हैं ! "लोकतंत्र" ब्लॉग आपका हार्दिक स्वागत करता है। आभार "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/