दोहे 12: चुनावी दोहे
निर्दल बाँधे राखिए , डोरे उन पर डार ,
ना जाने किस हौद में, दें अपना मुँह मार ।
छल कपट और मोह मद, नेता की पहचान,
साँपन काटे बच सके , इनसे बचै न प्रान ।
उड़न खटोला पे उड़ें, देख ग़रीबी रोय,
जनता छप्पर पे टँगी, दर्द न पूछै कोय ।
पीड़ित शोषित हो कहीं, आँसू पोछैं धाय,
अगले किसी चुनाव में, वोट खिसक न जाय ।
एक टीस मन की यही , करती है बेचैन
मंत्री की कुर्सी मिले, जी में आवै चैन॥
शब्दों की बाजीगरी नेता जी का खेल,
वैचारिक प्रतिबद्धता, हुई हाथ की मैल ।
देश प्रेम सेवा मदद , कुरसी के उपनाम ।
जब चुनाव जीते नहीं, अब क्या इनका काम
-आनन्द.पाठक-
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