शुक्रवार, 12 अप्रैल 2024

दोहे 11 :



दोहे 11 

रथयात्रा ने कर दिए, गाँव शहर में पाँक ।
कमल उगाने की कशिश,दिल्ली पर है झाँक॥

घोटाले उगने लगे, यत्र तत्र चहुँ ओर ।
चार कदम चलने लगे वह तिहाड़ की ओर॥

नित वादों के जाल बुन, रहें मछलियाँ फ़ाँस ।
जनता भी चालाक है ,नहीं फ़टकती पास ॥

 धवल वस्त्र अब देख कर, बगुला भी शरमाय ।
नेता जी ध्यानस्थ हैं ,’लछमिनियाँ’ मिल जाय ॥

बुधना खुश ह्वै नाचता , छेड़े लम्बी तान ।
मेरे गुरबत से बने, नेता कई महान ॥

गमले उगे गुलाब भी, ठोंक रहे है ताल ।
बरगद वाले सर झुका, हाथ लिए जयमाल ॥

कल ही जो पैदा हुए, आज ’युवा-सम्राट ।
तमग़ा ऐसे दे रहे , जैसे  बन्दर बाँट ॥

-आनन्द.पाठक-

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