ग़ज़ल 333 [09F]
221--2121----1221---212
कुछ लोग बस हँसेंगे, तुझे पाएमाल कर
अपना गुनाह-ए-ख़ास तेरे सर पे डाल कर
कितना बदल गया है ज़माना ये आजकल
दिल खोलना कभी तो, जरा देखभाल कर
लोगों ने कुछ भी कह दिया तू मान भी लिया
अपनी ख़िरद का कुछ तो कभी इस्तेमाल कर
वह वक़्त कोई और था, यह वक़्त और है
जो कह रहा निज़ाम, न उस पर सवाल कर
सौदा न कर वतन का, न अपनी ज़मीर का
मिट्टी के कर्ज़ का कभी कुछ तो खयाल कर
इन बाजुओं में दम अभी, हिम्मत है, हौसला
फिर क्यों करूँ मै फ़ैसला, सिक्के उछाल कर
’आनन’ सभी की ज़िंदगी तो एक सी नहीं
हासिल है तेरे पास जो, उससे कमाल कर
-आनन्द.पाठक-
सं 27-06-24
शब्दार्थ
ख़िरद = अक़्ल
पाएमाल =बरबाद
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