शनिवार, 12 अगस्त 2023

गीत 77 :जगह जगह है मारा-मारी,

 

एक गीत 77


जगह जगह है मारा मारी, अब चुनाव की है तैयारी,


चूहे-बिल्ली एक मंच पर

साँप-छछूंदर इक कोटर मे

जब तक चले चुनावी मौसम

भगवन दिखें उन्हें वोटर में ।

नकली आँसू ढुलका कर बस, जता रहें हैं दुनियादारी

जगह जगह है मारा मारी----


मुफ़्त का राशन, मुफ़्त की ”रेवड़ी’

मुफ़्त में बिजली, मुफ़्त में पानी

"कर्ज तुम्हारा हम भर देंगे-"

झूठों की यह अमरित बानी ।

बात निभाने की पूछो तो, कह देते -" अब है लाचारी"

जगह जगह है मारा मारी


नोट-वोट की राजनीति में, 

आदर्शों की बात कहाँ है ?

धुआँ वहीं से उठता दिखता

रथ का पहिया रुका जहाँ है ।

ऊँची ऊँची बातें उनकी, उल्फ़त पर है नफ़रत भारी

जगह जगह है मारा मारी


नया सवेरा लाने निकले

गठबन्धन कर जुगनू सारे

अपने अपने मठाधीश की

लगा रहे है सब जयकारे

इक अनार के सौ बीमार हैं, गठबंधन की है दुश्वारी

जगह जगह है मारा मारी


सूरज का रथ चले रोकने

धमा-चौकड़ी करते तारे

झूठे नारे वादे लेकर --

साथ हो लिए हैं अँधियारे

वही ढाक के तीन पात है, जनता बनी रही दुखियारी

जगह जगह है मारा मारी, अब चुनाव की है तैयारी


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