बुधवार, 30 अगस्त 2023

ग़ज़ल 335[11F] झूठ की हद से जब गुज़रता है

ग़ज़ल 335[11F]

2122---1212---22


झूठ की हद से जब गुज़रता है

बात सच की कहाँ वो करता है ।


जब दलाइल न काम आती है

गालियों पर वो फिर उतरता है ।


हर तरफ है धुआँ धुआँ फ़ैला

खिड़कियां खोलने से डरता है ।


वह उजालों के राज़ क्या जाने

जुल्मतों में सफर जो करता  है ।


आसमाँ पर उड़ा करे हरदम

वह ज़मीं पर कहाँ ठहरता है !


निकहत-ए-गुल से कब शनासाई

मौसिम-ए-गुल उसे अखरता है ।


कैसे ’आनन’ करें यकीं उसपर

जो ज़ुबाँ दे के भी मुकरता है ।


-आनन्द.पाठक-

सं 28-06-24

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