ग़ज़ल 335[11F]
2122---1212---22
झूठ की हद से जब गुज़रता है
बात सच की कहाँ वो करता है ।
जब दलाइल न काम आती है
गालियों पर वो फिर उतरता है ।
हर तरफ है धुआँ धुआँ फ़ैला
खिड़कियां खोलने से डरता है ।
वह उजालों के राज़ क्या जाने
जुल्मतों में सफर जो करता है ।
आसमाँ पर उड़ा करे हरदम
वह ज़मीं पर कहाँ ठहरता है !
निकहत-ए-गुल से कब शनासाई
मौसिम-ए-गुल उसे अखरता है ।
कैसे ’आनन’ करें यकीं उसपर
जो ज़ुबाँ दे के भी मुकरता है ।
-आनन्द.पाठक-
सं 28-06-24
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