सोमवार, 26 अगस्त 2024

ग़ज़ल 421 [70-फ़] : ये हस्ती चन्द रोज़ां की

 ग़ज़ल 421[70 फ़]

1222---1222---1222---1222


ये हस्ती चंद रोज़ां की, फ़क़त इतना फ़साना है ।

किसी के पास जाना है तो ख़ुद से दूर जाना है।

 

उमीदों से भरा है दिल कि आओगे इधर इक दिन

अक़ीदा है अभी क़ायम , क़यामत तक निभाना है ।


तुम्हे एह्सास तो होगा, तड़पता है किसी का दिल

उठा तो अब निक़ाब-ए-रुख, नफ़स का क्या ठिकाना है ।


हवाओं में घुली ख़ुशबू पता उसका बताती है 

मुझे मत रोक ऎ ज़ाहिद !मुझे उस ओर जाना है ।


ज़माने की हिदायत को भला माना कहाँ आशिक

नहीं सुनना जिसे कुछ भी, उसे फिर क्या सुनाना है ।


हमारी बुतपरस्ती की शिकायत क्यों तुम्हें, वाइज़ !

तुम्हारी राह चाहे जो, हमारी आशिक़ाना है ।


जुनून-ए-शौक़ है ज़िंदा  तभी तक मैं भी हूँ ज़िंदा 

सिवा इसके न ’आनन’ को मिला कोई बहाना है ।


-आनन्द.पाठक-



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