गुरुवार, 8 अगस्त 2024

ग़ज़ल 416[32 अ] : रखें इलजाम हम किस पर

 ग़ज़ल 416 [ 32 अ ] 

1222---1222---1222---1222


रखें इलजाम हम किस पर, वतन से बेवफ़ाई का ।

सभी परचम बुलंद रखते, सियासत की लड़ाई  का   

 

छुपा कर है रखा ख़ंज़र, मुनक्क़िस1 है, मुनाफ़िक2 है

करे दावा हमेशा वह क़राबत3 आशनाई  का । 

 

मिला कर हाथ दुश्मन से, वो ग़ैरों से रहे मिलते

किए चर्चा सरे महफ़िल, हमारी बेवफ़ाई का । 

 

क़दम दो-चार भी जो रख न पाए घर से हैं बाहर

उन्हे समझा गया मालिक हमारी रहनुमाई का । 

 

पला करता है गमलों में, घरौदों में, जो साए में 

उसे यह बदगुमानी है , वो है मालिक ख़ुदाई का। 

 

बदल देता है जो अपनी गवाही चन्द सिक्कों पर

यकीं कैसे करे कोई भला उसकी दुहाई  का ।

 

ज़माने के मसाइल पर नहीं वो बोलते ’आनन’

सुनाते हैं हमेशा ही वो किस्सा ख़ुदसिताई का ।

 


-आनन्द पाठक- 

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