ग़ज़ल 418[67-फ़]
2122---1212---22
जब कहीं तेरी रहगुज़र आई ।
याद तेरी ही रात भर आई ।
एक लम्हा तुम्हे था क्या देखा
बाद ख़ुद की न कुछ ख़बर आई ।
छोड़ कर जो गई किनारे को
लौट कर फिर न वो लहर आई ।
तुमको देखा तो यूँ लगा ऐसे,
ज़िंदगी जैसे फिर नज़र आई ।
वज़्द में दिल नहीं रहा अपना
उनके आने की जब ख़बर आई।
दर्द अपना कि था ज़माने का
आँख दोनों में मेरी भर आई ।
बात फिर ख़त्म हो गई ’आनन’
बुतपरस्ती पे जब उतर आई ।
-आनन्द पाठक -
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें