बुधवार, 14 अगस्त 2024

ग़ज़ल 418[67फ़] : जब कहीं तेरी रहगुज़र आई

 ग़ज़ल 418[67-फ़]

2122---1212---22

जब कहीं तेरी रहगुज़र आई ।

याद तेरी ही रात भर आई ।


एक लम्हा तुम्हे था क्या देखा

बाद ख़ुद की न कुछ ख़बर आई ।


छोड़ कर जो गई किनारे को

लौट कर फिर न वो लहर  आई ।


तुमको देखा तो यूँ लगा ऐसे,

ज़िंदगी जैसे फिर नज़र आई ।


वज़्द में दिल नहीं रहा अपना

उनके आने की जब ख़बर आई।


दर्द अपना कि था ज़माने का

आँख दोनों में मेरी भर आई ।


बात फिर ख़त्म हो गई ’आनन’

बुतपरस्ती पे जब उतर आई ।


-आनन्द पाठक -

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