ग़ज़ल 411 [63-फ़ ]
2122---1212---22
मेरी यादों में आ रहा है वो
जैसे मुझको बुला रहा है वो ।
या ख़ुदा दिल की ख़ैरियत माँगू
रुख़ ए पर्दा उठा रहा है वो ।
वह ज़ुबाँ से तो कुछ नहीं कहता
पर निगाहे झुका रहा है वो ।
सामने देख कर नज़र आता ,
हाल दिल का छुपा रहा है वो ।
गीत वैसे तो गा रहा मेरा ,
दर्द अपना सुना रहा है वो ।
अब तो बातों में रह गई बातें
अब न वादा निभा रहा है वो ।
बात कुछ भी तो थी नहीं ’आनन’
ताड़, तिल का बना रहा है ,वो ।
-आनन्द.पाठक-
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